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Top 5 hindi moral stories with moral for class 4,5,6,7,8 / कक्षा 4 से 8 तक के विद्यार्थीयों हेतु नैतिक कहानियाँ हिन्दी में ।

 

 Top 5 hindi moral stories for class - 4,5,6,7,8 with moral  // कक्षा 4 से 8 तक के विद्यार्थीयों हेतु नैतिक कहानियाँ हिन्दी में ।


          

                    Content 

1  मीठी वाणी

2  मेहनत  ही खज़ाना 

3  भविष्य की तैयारी 

4  हवा का घमंड 

5  झूठा हिरन                              


                

                      1 मीठी वाणी 

एक बार एक व्यक्ति किसी प्रसिध्द महात्माजी के पास गया और पूछा -- महात्माजी !  क्या आप मुझे बता सकते है कि  "दीर्घजीवी"  कौन है ??

महात्माजी मुस्कुराएं और प्रेम से बोले  -- पुत्र !  तुम मेरे नज़दीक आओ और मेरे मुँह  में  देखकर बताओ कि मेरे मुँह में "जीभ" है या नहीं??  

व्यक्ति ने महात्माजी के मुँह में  देखा और कहा --   हाँ, महाराज !  जीभ तो है।

महात्माजी ने पुनः पूछा -- अच्छा बताओ कि मेरे मुँह में दांत है कि नहीं  ??

व्यक्ति ने महात्माजी के मुँह में देखा और कहा  -- नहीं महाराज ! आपके मुँह में दांत नहीं है, एक भी दांत नही है

महात्माजी ने पुनः पूछा  --  जीभ तो दांत उगने के पहले से ही मुँह में  उपस्थित होती है और दांत बाद में निकलते है। फिर भी दांत जल्दी गिर जाते है, जीभ आखिरी दम तक साथ रहती है। .........   जीभ दाँतो से पहले जन्मीं तो उसे जाना भी दाँतो से पहले ही था परंतु जीभ  तो अभी भी मेरे  मुँह में मौजूद है।  क्या तुम बता सकते हो ऐसा क्यूं है ??

व्यक्ति ने कहा -- नहीं महाराज ! मुझे इसका कारण नहीं पता। कृपया आप मेरा मार्गदर्शन करें ।

महात्माजी बोले  --  दांत  कठोर होते है और जीभ कोमल व लचीली होती है। और यहीं तुम्हारे सवाल का जवाब है। जिसमे लचीलापन होता है, कोमलता होती है, जो नम्र होता है, विनयी होता है वह अधिक टिकाऊ होता है और दीर्घजीवी होता है।   इसी वाणी की वज़ह से ही आपको मृत्युपरांत भी जाना जाता है। इसकी बदोलत आप लोगो के मन में सदैव जीवित रहते है। इसी प्रकार जिसकी वाणी शांत, मधुर व संयमित होती है, उसका प्रभाव अधिक होता है किंतु जिसकी वाणी कठोर और कड़वी होती है, कुछ समय पश्चात उसका महत्व नहीं रहता। 

महात्माजी की बात सुनकर व्यक्ति समझ चुका था कि जीवन में लचीलापन और कोमलता ही सदैव दीर्घजीवी रहने का आधार है। और जिनके पास  यह है वहीं दीर्घजीवी है।

नैतिक शिक्षा  -- 

 हमारे स्वभाव  में कोमलता और लचीलापन होना चाहिए । वाणी हमारे व्यक्तित्व की परिचायक होती है। इसलिए नम्र और अच्छी वाणी को ही अपने जीवन का आधार बनाएं रखे। 

                    

                   2  मेहनत ही ख़जाना 

हरीराम नामक किसान बहुत मेहनती था। दिन रात खेत में काम करके अपने परिवार का भरण पोषण  भली-भांति कर ही लेता था। हरीराम के चार पुत्र थे। चारों  पुत्र  महा आलसी थे।  ........ 

अब पुत्र बड़े हो चुके थे तो किसान हरीराम रोज़ अपने पुत्रों से कुछ काम करनें के लिए कहता, लेकिन चारो  पिता की कोई बात  नहीं मानते थे और अपना सारा वक़्त  इधर-उधर बेवजह घूमने फिरने में बीता दिया करते थे । 

एक दिन हरीराम की तबियत ज्यादा खराब हो गई। हरीराम ने अपने पुत्रों को सुधारने हेतु अपनी बीवी के साथ मिलकर एक योजना बनाई।  उसने अपने  चारों बेटों को बुलवाया और कहा कि -- मेरे प्रीय पुत्रों! मेरे जीवन का कोई भरोसा नहीं है लेकिन मरने के पहलें मैं तुम लोगों  को बताना चाहता हूँ कि मेरी मृत्यु के पश्चात  तुम लोग खेत में  दबे हुएं पूर्वजों के खज़ाने को निकाल लेना और आपस में बराबर बांट लेना। इसके कुछ दिनों बाद हरीराम की मृत्यु हो गई । ..........   

अब चुकि बात खज़ाने की थी तो चारों बेटे ने सोचा कि बस एक बार की मेहनत है फिर तो जिंदगी भर का आराम ही आराम ।  चारों ने मिलकर पूरा खेत खोद  दिया किंतु  कोई ख़जाना नहीं  मीला।  बेटे माँ के पास आए और कहा कि खेत में  कोई खज़ाना नहीं  मिला, हमने तो पूरा खेत अच्छे से खोद डाला। ...    माँ  ने कहा खजाना नहीं  मिला तो कोई बात नहीं  परंतु जब पूरा खेत खोद ही दिया है तो अब उसमें बीज भी बो आओ। बेटों  ने ऐसा ही किया और खेत में  बीज डाल दियें । अब चारों बेटे, माँ के कहे अनुसार  खेत का रख रखाव भी करते। धीरे-धीरे  चारों  पुत्रों को अपने खेतों से मोह हो गया और कुछ समय पश्चात लहलहाती फसल आई। इस बार तो हर वर्ष से ज्यादा और अच्छी फसल आई थी जिससे चारों  को खूब मुनाफ़ा हुआ। चारों को अब खेतों  के प्रति  लगन लग चुकी थी। 

चारों  ने मुनाफे के पैसों  से ओर खेती खरीद ली और चारों  जब माँ   का आशीर्वाद लेने पहुंचे  तो माँ  ने कहा -- आज सही मायने में  तुम्हें खज़ाना मिल ही गया। तुम्हारे पिताजी के खेत में कोई खज़ाना था ही नहीं, वो तो बस तुम लोगो को समझाना चाहते थे कि " असली खज़ाना " सिर्फ इंसान की मेहनत ही है। मेहनत करने वालों  की कभी हार नहीं  होती ।

नैतिक  शिक्षा  --

मेहनत करने से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। कभी-कभी मेहनत का फल देर से मिलता है पर मिलता जरूर है और  " मेहनत ही जीवन का असली खज़ाना है। " 

                   

               भविष्य की तैयारी

एक धर्म शाला में " गप्पू " नामक चींटा रहता था। दिवार के एक कोने में उसने अपना घर बना रखा था। गप्पू बहुत ही हंसमुख था परंतु लापरवाह भी था। एक सबसे बुजुर्ग  चींटा हमेशा "भविष्य के लिए तैयार" रहने के लिए  सबसे कहता रहता था किंतु गप्पू उनकी भी ना सुनता। कभी-कभी उसके साथी उसे समझाते कि हमें भविष्य के लिए भी तैयार रहना चाहिए  परंतु  " गप्पू "हमेशा  यह कह कर उनकी बात टाल देता कि ""अभी कौन सा मैं बूढ़ा होने जा रहा हूँ,"" जो भविष्य की चिंता करू।""

आए दिन धर्मशाला में कई लोग ठहरने आते रहते थे। इन लोगो के भोजन में से बहुत सारा भोजन निचे भी गिर जाया करता था, रसोई घर में भी नए-नए पकवान मिल ही जाते थे  जिससे गप्पू और उसके साथियों को भर पेट भोजन मिल जाया करता था। 

एक बार लगातार बारिश होने की वजह से लोगो का धर्मशाला में आना-जाना  लगभग बंद ही हो गया था। गप्पू को जहां  भर पेट भोजन मिलता था, वही यदा-कदा ही मिलने लगा।  एक बार बहुत "कंजूस सेठजी" आए गप्पू  मन ही मन बहुत खुश हुआ कि चलो कम से कम  भोजन तो मिलेगा। सेठ़जी जब भी भोजन की पोटली खोलते  गप्पू पास जाकर खड़ा हो जाता  और इंतजार करता कि कब सेठ़जी कुछ निचे गिरा दे परंतु सेठ़जी भी पक्के व्यापारी ठहरे मजाल कि भोजन करते समय एक भी दाना निचे गिर जाएं । सेठ़जी दो दिन ठ़हरे, जितनी भी बार सेठ़जी कुछ खाते पीते गप्पू उनके पास पहुंच ही जाता परंतु गप्पू के हाथ कुछ भी नहीं लगता। बहुत दिनो से उसे भोजन नहीं  मिल पा रहा था। भूख से व्याकुल गप्पू बहुत ही कमजोर हो चुका था।  ...... अचानक "गप्पू"  चक्कर खा कर गिर पड़ा ।  

जब गप्पू को होश आया तो वह दिवार के कोने में बने अपने ही घर पर था। धीरे-धीरे आँखे खुलते ही गप्पू को उसके साथी दिखाई दिए जो उसे कह रहें थे कि --  देखा इसलिए कहते थे कि भविष्य के लिए तैयार रहो परंतु  तुम्हें कहा किसी की सुनना है। 

हम लोगो ने तो बारिश के मौसम के लिए पर्याप्त भोजन एकत्रित कर रखा था जो आज हमें काम आ रहा है।  वो तो अच्छा है कि जब तुम बेहोश हुएं तो हमने तुम्हे देख लिया वरना तुम ना जाने किसके पैरो तले कुचल कर मारे जाते, बेसुध जो पडें थे हाल में बिचो-बिच। 

गप्पू ने साथियों की तरफ नजरें दौडाई तो उसे कुछ धूमिल सा याद आ रहा था कि केसे उसके साथी उसे बिच हाल से उठाकर लाए थे और अन्न के महीन टुकड़े धीरे-धीरे उसके मुंह मे डाल रहे थे और आज उनकी वज़ह से ही गप्पू जीवित हो उठा था।  गप्पू ने नम आँखों से अपने साथियों को धन्यवाद दिया। 

अब गप्पू समझ चुका था कि भविष्य के लिए तैयार रहने का मतलब सिर्फ बुढ़ापे के लिए तैयार रहना नहीं  है वरन  आने वाले हर दिन और हर मौसम में डटें रहना है।  

नैतिक शिक्षा  --

हमें भविष्य की कठिनाईयों से निपटने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए । हमें  हंसमुख तो होना ही चाहिए किंतु लापरवाह नहीं क्योंकि लापरवाही से ही हमारा आने वाला कल ज़ोखिम भरा हो सकता है।

                    

                  4 हवा का घमंड 

  एक बार हवा को बहुत घमंड आ गया। उसे लगता कि इस संपूर्ण पृथ्वी पर उससे ज्यादा प्रभावशाली कोई ओर है ही नहीं । 

वह सबको बोलती फिरती कि मेरी वज़ह से ही सभी जीवित है। अगर मैं ना रहूं तो कोई भी जीवित  ना रह सकेंगा। मैं सबसे शक्तिशाली  और प्रभावशाली हूँ ।  अब तो हवा आए दिन किसी ना किसी को चुनोतीयां भी देने लगी। 

एक दिन हवा सूरज के समीप से गुजर रहीं थी । हवा,  सूरज को चुनौती देते हुए बोली कि तुम्हें तो सब बहुत प्रभावशाली समझते है किंतु मुझे तो तुममें कोई खूबी नज़र नहीं आती ।  सूरज कुछ ना बोला, चुपचाप हवा की बात सुनता रहा। 

अचानक हवा को निचे एक व्यक्ति दिखाई दिया। हवा ने व्यक्ति की तरफ इशारा करते हुएं कहा कि हम दोनो में  से जो कोई भी उस व्यक्ति की पहनी हुई जैकेट उतरवाने में  सफल रहेगा तो वही ज्यादा प्रभावशाली माना जाएंगा । ...... सूरज ने भी इस बात के लिए हामी  भर दी।

अब हवा निचे उतरी और व्यक्ति के पास तेजी से चलने लगी ताकि व्यक्ति की जैकेट तेज हवा के साथ उड़ कर गिर जाएं । व्यक्ति को ठंड महसूस हुई। हवा ने अपनी गति थोड़ी ओर बढ़ा दी तो उसने अपने जैकेट के खुले हुएं बटन भी लगा लिए। हवा ने मन में सोचा अरे !!  ये क्या इस व्यक्ति  ने तो जैकेट के बटन लगा लिए अब जैकेट केसे उतरेगी ?? झल्लाते हुए हवा ओर तेजी से चली । हवा इतनी तेजी से चली कि आस-पास सब उड़ने  लगा, यहाँ तक कि जैकेट वाला व्यक्ति भी तेज हवा में अपनी चाल संभाल नहीं पाया और थपेड़े खाकर लुढ़कता रहा किंतु तेज हवा भी  व्यक्ति की जैकेट को नहीं  निकाल सकीं। आखीरकार हवा का समय समाप्त हो चुका था । 

अब बारी सूरज की थी। सूरज ने धीरे-धीरे अपने ताप को बढ़ाना शुरू किया। व्यक्ति को गर्मी  महसूस हुई तो उसने जैकेट के बटन खोल लियें । फिर से सूरज ने अपना ताप ओर बढ़ा दिया। आखीरकार तेज गर्मी महसूस होने की वज़ह से व्यक्ति  ने जैकेट उतार दी। .......... सूरज बाज़ी जीत चुका था।  सूरज ने मुस्कुराते हुए हवा की तरफ देखा और हवा ने शर्म से सर झुका लिया। आखीरकार हवा का घमंड टूट चुका था।

नैतिक शिक्षा --

प्रकृति ने सभी को कुछ ना कुछ कार्य सौंप  रखा है।  कोई ना कोई हमसे ऊपर अवश्य ही रहता है इसलिए  स्वयं की किसी बात का घमंड ना करें क्योंकि सभी अपनी क्षमता के अनुरूप ही कार्य करते  है।


                        5 झूठा हिरण

" चक्की "  और  " मक्की " नामक दो खुबसूरत नन्हे  हिरण जंगल में रहा करते थे। "मक्की" बडा था और स्वभाव से बहुत शांत और मृदुभाषी था। वही  "चक्की" बहुत शरारती था । " चक्की " आए दिन कोई ना कोई नई शरारत करता रहता। एक बार सभी जानवर एक साथ बैठकर जंगल की योजनाओं पर बातचीत कर रहें थे कि उसे शरारत सूझी और वह दौड़ता हुआ आया और बोला --  भागों-भागों  जंगल में  शिकारी आए है।  सब भागों-भागों !  शिकारी की खबर सुनते ही सभी जानवर तेजी से दौड़े । दौड़ते-दौड़ते एक सुरक्षित स्थान पर जा रुके । सबको बेतहाशा भयभीत व हैरान देखकर चक्की ज़ोर-जोर से हंसने लगा। सबने हंसने का कारण पूछा तो बोला -- " मैं  तो यूं ही मज़ाक कर रहा था। " .........  सभी जानवर बड़बड़ाते हुएं अपने घर चले गए। 

कुछ दिनो बाद " चक्की "  ने पुनः शिकारी के आने की झूठी खबर गाँव में फैला दी। इस बार भी जानवरों को लगा  "चक्की"  बार-बार झूठ थोड़े ही बोलेगा और सभी फिर से तेजी दौड़े। गिरते-पड़ते सभी सुरक्षित स्थान पहुंचे। इस बार भी सबको गिरते-पड़ते देख "चक्की" को बडा मज़ा आ रहा था और हंसते हंसते उसने सबको बता दिया कि वह तो बस मज़ाक कर रहा है। इस बार सभी जानवरों को बहुत गुस्सा आया और सभी ने आगे से "चक्की "की किसी भी बात को नहीं मानने का निर्णय  लिया।

एक दिन सच में शिकारी जंगल आए और "चक्की"  ने इन शिकारी को देख लिया। दौड़ता हुआ "चक्की" सबके पास गया। कोई ने उसकी बात का भरोसा नहीं किया। अंततः चक्की का बड़ा भाई "मक्की"  शिकारी के जाल में फंस गया।  "चक्की" ने देखा तो बहुत रोया और भाई से बोला -- तुम्हें तो बताया था कि शिकारी जंगल में  आए है तो फिर भी तुम निश्चिन्त हो घर से बाहर क्यूं निकले  ??

मिक्की ने कहा -- मुझे लगा हर बार की तरह इस बार भी तुम झूठ बोलकर सबका मज़ाक  बना रहें हो। मक्की ने क्रोध भरें शब्दो में  कहा। अब जाओ और किसी अन्य नुकिले दातं वाले जानवर को बुलाकर लाओ ताकि कोई तो मेरी मदद करें जाल से बाहर निकालने में ।

"चक्की" ने तेज दौड़ लगाई । " चक्की " जिस भी जानवर के पास जाता वह चक्की की बात पर विश्वास ना करता और उसे यह कहकर भगा देते कि -- "चल जा झूठे !, कितना झूठ़ बोलेगा ।"  ..........     सब की बातें सुनकर "चक्की" रोने लगा उसने कहा "" आज मेरी वजह से मेरे भाई की जान ख़तरे में पड़ गई है। और सबका विश्वास मुझ पर से उठ चुका है। ....  अब मैं कैसे भाई की जान बचाऊ ?? ""  वह रो ही रहा था कि एक " बंदर " ने रोते हुएं उसे देखा और रोने का कारण पूछा। "चक्की" ने सब बात बताई। ......  बंदर ने कहा ठीक है यदि तुम इस बार सच बोल रहें हो तो मैं  तुम्हारी  मदद कर देता हूँ। फिर बंदर अपने "दोस्त चूहेराज"  को अपने साथ लेकर " मक्की " के समीप पहुंचा । चूहे ने जल्दी से जाल काटना शुरू कर दिया और अंततः  शिकारी के आने के पहले चूहे ने पूरा जाल काट दिया और  सब यहाँ  से भागकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचे। ....... परंतु इस पूरी घटना ने "चक्की" को एक नया सबक सीखा दिया था कि  --  "" अब आगे से वह कभी भी झूठ नहीं बोलेगा। ""

नैतिक शिक्षा  -- 

 झूठ नहीं बोलना चाहिए। बार-बार झूठ़ बोलकर सबको परेशान  करने वाला कभी भी किसी के विश्वास का पात्र नहीं बन पाता है। 



      

                 🙏  धन्यवाद दोस्तों  


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