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अकबर और बीरबल की तीन बेहतरीन हिन्दी कहानियाँ // hindi stories of Akbar and birbal with moral

 


अकबर और बीरबल की तीन बेहतरीन  हिन्दी कहानियाँ // best hindi  stories  of Akbar and Birbal with moral




                                                 Content 


1. बेतुकी फरमाईश 


2. आधी धूप - आधी छांव 


3. पेड़ की गवाही





                       1.  बेतुकी फरमाईश 

                   

एक बार बादशाह अकबर और बीरबल सैर पर निकले। अकबर और बीरबल दोनो ही घोड़े  पर सवार थे।  चारों  तरफ हरियाली, हरे-भरें पेड़-पौधे देखकर राजा अकबर बेहद खुश हुएं । हरे वातावरण को देखकर  राजा अकबर  हरे रंग पर मोहित हो बेठ़े।

 राजा अकबर ने बीरबल से कहा -- बीरबल हम  हरे रंग के घोड़े पर बैठकर इस हरे-भरे सोंदर्य को देखना चाहते है अतः हमें हरे रंग का घोड़ा लाकर दो।

बीरबल ने कहा  --  हरे रंग का घोड़ा ??

अकबर ने कहा  --   हाँ, हरे रंग का घोड़ा। हरे रंग का घोडा लाने के लिए हम तुम्हें आठ दिन का समय देते है और यदि तुम हरे रंग का घोड़ा ना ला पाएं तो हम तुम्हें मंत्री पद से हटा देगें । 

बीरबर ने कहा -- ठीक है जाहंपना। 

अब बीरबल ने हरे रंग का घोड़ा ढूंढने  के लिए राजदरबार के कार्य  से आठ दिन का अवकाश ले लिया।  ..........   ठीक आठवें दिन बीरबल दरबार में  उपस्थित हुएं । राजा अकबर ने देखते ही तुरंत पूछा   --  कहों बीरबल ! ले आए हमारे लिए हरे रंग का घोड़ा ? 

बीरबल ने कहा ---  हाँ महाराज ! मुझें हरे रंग का घोड़ा मील गया है।

राजा अकबर  --  कहाँ हैं, हमारा प्यारा प्रिय घोड़ा ??  हमें तो कहीं  दिखाई ही नहीं  दे रहा है ।

बीरबल मुस्करा कर बोले  -- धीरज रखिए महाराज !   दरअसल हरे रंग का घोड़ा बड़ी  मशक्कत से मिला है और जो इस घोड़े का मालिक है, वह बड़ी मुश्किल से घोड़ा  देने को राज़ी हुआ है । घोड़े के मालिक की दो शर्ते है, मैं तो अपनी तरफ से दोनो शर्तो की हामी भर आया हूँ परंतु  आपकी हामी अधिक  मान्य है महाराज ।  क्या आप घोड़े के मालिक की शर्त मानने के लिए तैयार है ??  

अकबर ने कहा  -- क्या  शर्ते है ? हम तो हरे रंग के दुर्लभ और बेशकीमती घोड़े के लिए हर प्रकार की शर्त मानने को तैयार है।

बीरबल ने कहा -- महाराज  पहली शर्त यह है कि उस हरे रंग के घोड़े को लेने आप स्वयं जाएंगे, आपके अतिरिक्त कोई ओर नहीं ।

अकबर बोले -- बस इतनी सी बात !  अरे हम स्वयं  ही जाकर  घोड़े के मालिक से घोड़ा ले आएंगे ।  अब दूसरी शर्त बताओ ।

बीरबल ने  कहा  --  अब दूसरी शर्त यह है महाराज कि हफ़्ते में सोमवार से लेकर रविवार तक घोड़े का मालिक कोई लेन-देन नहीं करता है। अतः  घोड़े के मालिक का कहना है कि हफ़्ते के सातों दिन छोडकर किसी भी दिन आकर आप घोड़ा ले जा सकते है ।

अकबर  बोले  --  हाँ, हाँ क्यूं  नहीं ।  बस  राजा अकबर इतना ही कहते कहते रुक गए और दूसरी शर्त पर गौर फरमाया कि ऐसा कोई दिन नहीं है, जो हफ़्ते के दिनों में ना  आएं । ......... अकबर का ध्यान बीरबल की ओर गया ।

बीरबल पूछ रहें थे -- बोलिए महाराज क्या आप दूसरी शर्त भी मानने को तैयार है ?? यदि दूसरी शर्त के लिए  तैयार है तो मैं हरे रंग के घोड़े के मालिक को खबर कर देता हूँ कि महाराज जल्द ही  स्वयं आकर घोड़ा ले जाएंगे।

राजा अकबर ने गुस्से में  कहा  -- अरे ! मूर्ख बीरबल क्या तुम नहीं जानते कि हफ़्ते के सातों दिनों को छोडक़र कोई ओर दिन होता ही नहीं है।

बीरबल ने कहा --  नहीं महाराज होता तो होगा तभी तो घोड़े के मालिक ने यह शर्त रखी है।

राजा अकबर  --  इस तरह की बेतुकी शर्त रखने का क्या मतलब  ? जब हफ़्ते में  सात दिन होते है, तो होते है उसमें अब नया दिन भला कहाँ से लाया जा सकता है ?? क्या हमारे  राज्य में घोड़े के मालिक जेसे महामूर्ख लोग रहते है ? 

बीरबल मुस्कराए और बोले --  यह शर्त भी  ठीक उसी तरह बेतुकी है महाराज, जिस तरह आपने मेरे सामने हरे रंग का घोड़ा लाने की फरमाईश की थी। चाहे मनुष्य हो या जानवर सभी को  हर रंग प्रकृतिक तौर पर मीला होता। इसे हम अपनी मर्ज़ी अनुसार नहीं ला सकते ।  यदि  ऐसा होता तो अवश्य ही मैं आपके लिए हरे रंग का घोड़ा लाता महाराज, वो भी हफ़्ते के सातों दिन छोड़कर ।

बीरबल का तर्क सुनकर राजा अकबर को अपनी बेतुकी फरमाईश पर शर्मिन्दगी महसूस हुई  और राजा ने  बीरबल से अपनी बेतुकी फरमाईश के लिए माफ़ी मांगी ।

                            


                  2. आधी धूप - आधी छांव 


राजा अकबर को बहुत जल्दी और छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा आ जाया करता था। एक बार राजा अकबर  किसी बात को लेकर बीरबल से  क्रोधित हो गए और गुस्से में बीरबल को राज्य छोड़कर जाने की सजा  सुना दी।

बीरबल तो मस्त- मोला थे । बीरबल ने रातों रात राज्य छोड़ दिया और अनजान जगह पर पनी पहचान छुपा कर रहने लगे।

बहुत दिनों तक जब बीरबल लौट कर नहीं आए तो राजा अकबर को बीरबल की याद आने लगी। राजा बात -बात में  बार बार बीरबल को याद करने लगे।

राजा ने अपने दरबारियों को बीरबल को ढूंढने के लिए भेजा परंतु बीरबल किसी को भी नहीं मीले।

राजा की ऐसी हालत देखकर रानी ने कहा -- महाराज ! यदि आपको बीरबल को वापस बुलाना है तो इसके लिए मेरे पास एक सुझाव है । 

दूसरें  दिन अकबर ने राजमहल में ऐलान कर दिया कि जो भी व्यक्ति आधी धूप - आधी छांव साथ-साथ लाएगा, उसे मुंहमांगा ईनाम दिया जाएंगा ।

राज्य में सब सोच में  पड़ गए कि भला आधी धूप- आधी छांव केसे साथ में लेकर जाएं । बात चारों तरफ फैल गई । बात बीरबल तक भी पहुंची। बीरबल जहां रहते थे , वहाँ एक अत्यन्त गरीब परिवार भी रहता था। बीरबल ने उस गरीब परिवार की भलाई हेतु परिवार के मुखिया को एक उपाय सुझाया।

अब वह गरीब परिवार का मुखिया अपने सीर पर चारपाई लेकर महल पहुंच गया और महल के बाहर ही राजा से मिलने की ज़िद सिपाहियों से करने लगा। 

जब राजा अकबर को खबर लगी तो यस देखने के लिए महल के बाहर आ गए कि आख़िर वह व्यक्ति बाहर मिलने का आग्रह क्यूं कर रहा था।

जेसे ही राजा अकबर ने गरीब व्यक्ति के सीर पर  चारपाई देखी तो पूछा कि यह सब क्या है ?

व्यक्ति ने कहा  -- महाराज! आपने ही तो आधी धूप व आधी छांव  लाने का ऐलान करवाया था, सो मैं  ले आया आधी धूप व आधी छांव।

दिन में  चारपाई लेकर  आए व्यक्ति की चारपाई की परछाई से बराबरी से आधी धूप व आधी  छांव बन रही थी।

राजा ने किए  गए ऐलान के अनुसार व्यक्ति को ईनाम दिया और पूछा कि तुम्हें आधी धूप  आधी छांव के लिए चारपाई का विचार केसे आया ?

गरीब व्यक्ति ने कहा  ---  कुछ समय पहले ही हमारे घर के समीप  बहुत ही चतुर  व्यक्ति रहने आया है जो समय-समय पर हमें  उचित सलाह देता है, उस बुद्धिमान व्यक्ति ने ही मुझें यह उपाय सुझाया था ताकि  मैं  ईनाम की राशि जीत सकूं।

राजा अकबर समझ गए कि वह बुद्धिमान  व्यक्ति बीरबर के सिवाय भला कौन हो सकता है । राजा अकबर स्वयं  बीरबल से मिलने पहुंचे व बीरबल  को मना कर अपने महल में  वापस ले आए।




                    3. पेड़ की गवाही

एक बार राजा अकबर के दरबार में  एक वृद्ध  व्यक्ति  फरियाद लेकर आया और कहने लगा -- महाराज ! मेरे साथ अन्याय हुआ है कृपया आप न्याय करें ।

अकबर ने पूछा--  बताओ क्या बात है ?

वृद्ध व्यक्ति ने कहा  --  मैं एक वृध्द किसान हूँ महाराज। मेरी कोई सन्तान नहीं है। मैं और मेरी बीवी खेती-किसानी करके अपना गुजारा कर लिया करते थे, लेकिन एक वर्ष  पूर्व ही मेरी पत्नी का भी स्वर्गवास हो गया था महाराज !  .......  मेरे पास कुछ सोने के सिक्कें  और बीवी  के सोने के आभूषण रखे हुए थे। यहीं मेरी जीवन भर की ज़मापूंजी थी।

अभी कुछ दिन पहले ही मेरे मन में तीर्थ यात्रा करने का विचार आया। लेकिन  मैं  इन सिक्कों और आभूषणों  को तीर्थ यात्रा पर साथ नहीं ले जा सकता था क्योंकि यात्रा के दौरान इनके चोरी होने का ड़र था और इन्हें साथ ले जाने से मेरी जान को खतरा भी हो सकता था ।  ........   अतः मैने अपने साहूकार दोस्त से बातचीत की और अपनी समस्या बताई। मैं  हमेशा  से ही इसी साहूकार से  लेन-देन करता रहा हूँ ।

साहूकार ने कहा ---  तुम अपने सिक्के और आभूषण की एक पोटली बनाकर मेरे पास दे दो। मैं  इसे अमानत के तौर पर संभाल कर रख लूंगा और जब तुम आओगे तो मैं  तुम्हारी अमानत तुम्हें वापस लौटा दूंगा। इससे तुम निश्चिन्त होकर तीर्थयात्रा पर जा सकोगें ।

मुझे साहूकार की बात जंच गई। और साहूकार मेरी पुरानी जान पहचान वाला था इसलिए मैंने अपने स्वर्ण आभूषण और सिक्कों  की पोटली साहूकार के बताये हुए स्थान पर जाकर साहूकार को दे दी और तीर्थयात्रा पर चला गया। परन्तु  जब वापस आया तो साहूकार ने मुझे " सिक्कें और आभूषण" की पोटली वापस देने से इंकार कर दिया।

अब आप ही न्याय करें महाराज !  वृद्ध की बात सुनकर राजा अकबर ने  बीरबल से कहा कि बीरबल तुम पूरी घटना की सच्चाई का पता लगाओ।

बीरबल ने साहूकार को  दरबार में बुलवाया। इसी बीच बीरबर ने वृद्ध से बहुत सी जानकारी ले ली। जब साहूकार से पूछा गया तो साहूकार ने साफ मना कर दिया कि वृद्ध ने  सिक्कें और आभूषण की कोई पोटली नहीं  दी।

अब बीरबल ने वृद्ध  की तरफ देखा और कहा ---  हो सकता हो आप अपनी पोटली कही ओर रखकर  भूल गए होंगे क्योंकि साहूकारजी तो साफ इन्कार कर रहें है।

वृद्ध ने कहा -- नहीं, नहीं  बेटा ! मैं  सच बोल रहा हूँ । मैंने अपने सामान की पोटली साहूकार को ही दी थी

बीरबल ने कहा --  बाबा अगर आपने वाकई में   पोटली साहूकार को दी थी तो कोई ना कोई गवाह भी तो होगा ना। 

वृद्ध ने कहा -- नहीं महाराज, जब मैंने पोटली साहूकार को दी थी तब आसपास कोई नहीं था।

बीरबल ने कहा --  कोई पेड़- पौधे, दरवाज़े- खिड़की, कोई तो होगा वहाँ, जहाँ  आपने पोटली साहूकार को दी थी।

वृद्ध बोला  --  हाँ, महाराज । वहाँ बड़ा सा आम का पेड़  था। 

बीरबल  ने कहा -- तो जाइए और आम के पेड़ से पूछकर आइए, वो आपकी गवाही देगा।

बीरबल की बात सुनकर वृद्ध चला गया।  पाँच-दस मिनट बाद बीरबल ने कहा कि अब तक तो वृद्ध को वापस आ जाना था।  यहीं बात बीरबल ने एक ही बार में सात-आठ बार दोहराई।  .....  खींजला कर साहूकार ने कहा -- नहीं, नहीं  महाराज, वो आम का पेड़ पास में थोड़े ही है। और वहाँ जाने का रास्ता भी उबड़-खाबड़ है। इतनी जल्दी वृद्ध वापस नहीं  आ सकता।

साहूकार की बात सुनकर बीरबल मुस्करा दिए और कुछ नहीं कहा।


थोड़ी देर बाद वृद्ध वापस आया और बोला -- महाराज ! "आम का पेड़ तो गवाही नहीं दे रहा है। मैने तो बार-बार पेड़ से पूछा। अंततः मैं लौट आया।"

बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा -- आप बैठ जाए बाबा क्योंकि आम के पेड़  ने यहाँ आकर स्वयं गवाही दे दी । 

बीरबल ने साहूकार की तरफ देखा कहा --  क्यूं जनाब ! यदि वृद्ध ने आपको अपनी सामान की पोटली नहीं दी तो आपको केसे पता चला कि आम के पेड़  की दूरी यहाँ से बहुत अधिक है और वहाँ पहुँचने का रास्ता भी उबड़-खाबड़ है ?


साहूकार बीरबल की बात सुनकर समझ गया कि वह पकड़ा गया है। शर्मिंदा होकर साहूकार ने सिर झुका लिया और अपनी गलती स्वीकार कर ली ।











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