रक्षाबंधन की पाँच विशेष कहानीयाँ
रक्षाबंधन भारत का प्राचीनतम त्यौहार है। आज तक आपने रक्षाबंधन की एक या दो कहानीयाँ सुनी होगी परंतु आज हम इससे संबंधित पाँच विशेष कहानीयाँ जानेगे। रक्षा के इस बंधन की परंपरा हमारे वैदिक काल से चली आ रही है। रक्षा-सूत्र का महत्व देवताओ के मध्य महत्वपूर्ण स्थान रखता है।इस त्यौहार की शुरूआत के संदर्भ मे कई धार्मिक और सामाजिक कहानियाँ प्रचलित है। आज हम अपने ब्लॉग "टैक हिंदी किस्से,कहानी, पकवान " के माध्यम से रक्षाबंधन की विशेष कहानियों को जानेगें।
तालिका
भगवान श्रीकृष्ण और द्रोपदीजी की कहानी।
स्वर्ग के देवता इंद्र और इंद्राणी की कहानी।
राजा बली और माँ लक्ष्मी की कहानी।
भगवान गणेश और संतोषी माँ की उत्पत्ति की कहानी।
मृत्यु के देवता यम और बहन यमुना की कहानी ।
भगवान श्रीकृष्ण और द्रोपदीजी की कहानी
महाभारत के समय मे भगवान श्रीकृष्ण की श्रुत्रसवा नाम की बुआ थी, जिनको बडी मन्नतो से एक पुत्र हुआ था जिसका नाम शिशुपाल था। शिशुपाल जन्म से विक्षिप्त पैैैैदा हुआ था। वह जब पैैैैदा हुआ तो उसकी तीन आँखे और चार भुजा थी । जन्म के समय सामान्य बच्चो की तरह रोनेे के बजाय शिशुपाल गधे की भांति रैकने लगा और अजीब भयानक आवाज निकालने लगा जिससे सभी भयभीत हो गए थे। तभी अचानक भविष्यवाणी हुई कि जिस व्यक्ति के स्पर्श से शिशुपाल की विकृति दूर होगी,उसी के हाथो ही शशिशुपाल की मृत्यु भी होगी। इस बात को शशिशुपाल की माँ श्रुत्रसवा भलीभांति जानती थी। एक दिन जब भगवान कृष्ण बुआ से मिलनेे पहुचें तो बुआ ने अपने बालक शिशुपाल को कृष्ण की गोद मे दे दिया । जैसे ही शिशुपाल कृष्णजी की गोद मे आया वैसे ही शिशुपाल की सारी विकृति दूर हो गई।यह देखकर शिशुपाल की माँ यानी कृृष्णजी की बुआ बहुुुत खुश हुई।परंतु जब उन्हे याद आया कि शिशुपाल की विकृति दूर करने वाला ही,शिशुुुुुपाल की मृृत्यु का कारण बनेगा तो उन्होंने भगवान कृष्ण से शिशुपाल की रक्षा करने का वचन ले लिया। कृष्ण ने अपनी बुआ को वचन दिया कि वो शिशुपाल की 100 गलतियाँ माफ करेगें और इससेे ज्यादा गलतियाँ होने पर वह शिशुपाल का वध कर देेेेगें।जैसे- जैसे शिशुपाल बड़ा होते गया,वैसे-वैसे उसके अत्याचार बढते चले गए। शिशुपाल "चैदी" नामक राज्य का राजा बना। वह राजा भी था और श्रीकृष्ण का रिश्तेदार भी था किंतु उसकी क्रूरता दिन प्रतिदिन बढती जा रही थी। वह बार बार कृष्ण को चुनौती देता किंतु कृष्ण वचनबद्ध होने के कारण उसे छोड देते थे। शिशुपाल गलतीयों पर गलतियाँ करता चला गया और इस प्रकार शिशुपाल अपनी नीनावै 99 गलती कर बेठा। एक बार शिशुपाल ने घमंड़ भरे शब्द का प्रयोग करते हुए श्रीकृष्ण को चुनौती दे दी और इस प्रकार उसने अपनी सौ (100) गलतीयाँ पूरी कर ली और इस बार कृष्ण ने क्रोध मे आकर अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल की गर्दन काट डाली।
सुदर्शन चक्र के चलने के कारण श्रीकृष्ण की उंगली से रक्त की धार बहने लगी। यह देख द्रोपदी ने जल्दी से अपनी साडी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण की उंगली पर बांध दिया था और इस प्रकार द्रोपदी ने कृष्ण की उंगली की रक्त की धार को रोका था। इसके बदले मे कृष्ण ने द्रोपदीजी को बहन मानते हुए उनकी रक्षा का वचन दिया और भरी सभा में जब द्रोपदी का चीरहरण हो रहा था तब भगवान कृष्ण ने द्रोपदीजी की रक्षा की थी। इस प्रकार कृष्ण और द्रोपदीजी ने रक्षा के इस बंधन को निभाया था।
स्वर्ग के देवता इंद्र और इंद्राणी की कहानी
कहा जाता है एक स्वर्ग के राजा इंद्रजी और असूरो के बिच घमासान युध्द हुआ था जो कि बारह (12) वर्षो तक चला था। इस युध्द मे इंद्रजी की लगातार हार हो रही थी यहाँ तक कि इन्द्रजी का शासन भी असूरो द्वारा छिनते जा रहा था जिससे इन्द्रजी बहुत पपरेशान और व्याकुल रहने लगे। यह देखकर इंद्राणी भी चिंतित हुई और अंततः दोनो अपने गुरू बृहस्पतिजी से मदद मांगने गए। बृहस्पतिजी ने रक्षाविधान को ही एकमााात्र हल बताया अतः गुुुरू बृहस्पतिजी के कहे अनुसार रक्षा-विधान पूर्ण किया गय। इस विधान में गुरु बृहस्पति ने अन्य ब्राह्मणो के साथ मिलकर मंंत्रो का पाठ किया जिसेे साथ ही साथ इंद्र् और इन्द्राणी ने भी दोहराया।अंंत मे इंद्राणी ने सभी ब्राह्मणो से एक रक्षा-सूत्र मे शक्ती का संचार कराया और इस रक्षासूत्र को इंद्रजी की दाहिनी भुजा पर बांधा था। और इस रक्षासूत्र की शक्ति के प्रभाव से ही इंद्रजी की युध्द मे जीत हुई। और खोया हुआ शासन इस रक्षासूूत्र केे प्रभाव से ही पुनः प्राप्त हुआ। इस प्रकार यह कहानी रक्षासूत्र के महत्व को दर्शाती है।
राजा बली और माँ लक्ष्मी की कहानी
कहा जाता है दैत्यो के राजा बली 110 यज्ञ पूर्ण करने ही वाले थे। ताकि संपूर्ण ब्रह्मांड मे दैत्य और असूरो का ही राज रहे। इससे सभी देवताओ का डर बढता जा रहा था कि राजा बली अपना यज्ञ पूरा करके स्वर्ग पर भी अपना अधिकार जमा लेगें। इससे चिंतित होकर देवताओ ने भगवान विष्णु की शरण ली। देवताओ ने भगवान विष्णु को राजा बली की यह मंशा बताई और सहायता की प्रार्थना की। इसके बाद भगवान विष्णु ने एक बालक रूप ब्राह्मण का रूप धरकर "बामन" अवतार लिया और राजा बली के द्वार पर यज्ञ के संपन्न होने के समय पहुंच गए। राजा बली बहुत बडे दानी थे। उन्होेंने ब्राह्मण को द्वार पर देखा तो भिक्षा देेेेनी चाहिए परंतु उस "नन्हे बामन" ने बली द्वारा दी जाने वाली भिक्षा लेने से इंकार कर दिया और राजा बली से मनपसंद भिक्षा की ईच्छा जाहिर की। इस पर राजा बली ने ब्राह्मण को अपनी ईच्छानुुुसार भिक्षा मागने के कहा तो ब्राह्मण देेेेवता ने "तीन पग भूमी " भिक्षा मे मांग ली। इस पर राजा बली ने ब्राह्मण से कहा "मैं आपको सोना-चांदी, हिरे-जवाहरात ,अन्न,धन सब देने को तैयार हुं और आप सिर्फ तीन पग भूमी मांग रहेे है, ब्राह्मण देेेेवता आप एक बार पुुुनः विचार कर लिजिए" परंतु बामन देवता अपनी जिद पर अड़े रहे अंततः राजा बली ने बामन देवता की ईच्छानुुुसार तीन पग भूमी दान मे देते हुए कहा --है बामन देवता आप तीन पग रखकर भूमी नाप लिजिए। इस पर बामन देवता ने एक पग बढाया और संपूूर्ण धरती को नाप लिया। दूसरे पग मे स्वर्ग को नाप लिया। इस प्रकार भगवान विष्णु ने दो पग मे ही संपूूूर्ण धरती और आकाश को अपने अधीन कर लिया और जब तीसरा पग रखने की बारी आई तो बामन रूपी विष्णुजी ने राजा बली सेे पूछा अब मैं अपना तीसरा पग कहाँ रखूं ? मेरे द्वारा दो पग बढाने से समस्त धरती-आकाश और पाताल मेरेे अधीन आ गए अब मैैं अपना तीसरा पग कहाँ रखूं? अब तक राजा बली ब्राह्मण रूपी विष्णु को पहचान चुके थे। राजा बली ने घूटनो पर बैठकर शीश भगवान के समक्ष झूका दिया कहा प्रभु अपना तीसरा पग मेरे शीश पर रख दे और विष्णुजी ने अपना तीसरा पग राजा बली के शीश अर्थात सिर पर रख दिया और इस प्रकार प्रभु ने राजा बली को भी अपने अधीन कर लिया और संपूूर्ण धरती,आकाश को असूरो से बचाया था। इसके बाद राजा बली रसातल मे चले गए।
रसातल मे राजा बली ने भगवान विष्णु की घोर उपासना और तपस्या करके भगवान विष्णु से सदा अपने समक्ष उपस्थित रहने का वरदान प्राप्त कर लिया था। इस वरदान की वजह से विष्णुजी रसातल मे ही रहने लगे और राजा बली के द्वारपाल बन गए। जब बहुत वक्त बीत गया और भगवान विष्णु बैकुंठ नही आए तो माँ लक्ष्मी को चिंता होने लगी।एक दिन नारदजी बैकुंठ आए तो माँ लक्ष्मी से चिंतित होने का कारण पूछा तो माँ लक्ष्मी ने सारा वृतांत नारदजी को कह सुनाया और उनसे इसका हल निकालने के लिए कहा। इस पर नारदजी ने लक्ष्मीजी को एक उपाय सुझाया। नारदजी ने माँ लक्ष्मी को श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन राजा बली को रक्षा-सूत्र बांधकर भाई बनाकर विष्णुजी को अपने साथ वापस लाने का उपाय बताया और माँ लक्ष्मी ने रसातल मे जाकर श्रावण मास की पूर्णिमा को राजा बली को रक्षा-सूत्र बांधा और माँ लक्ष्मी ने राजा बली से उपहार स्वरूप भगवान विष्णु को वापस ले जाने के लिए के लिए मना लिया और राजा बली ने भी माँ लक्ष्मी को बहन माना और बहन को उपहार देने के लिए विष्णुजी को स्वंय के वचन से मुक्त कर दिया इस प्रकार माँ लक्ष्मी इस रक्षा-सूत्र की वजह से विष्णुजी को पुनः बैकुंठ ले आई।
अतः यह कहानी रक्षासूत्र के इस पवित्र त्यौहार के महत्व को दर्शाती है जिससे देवी देवता भी वंचित नही रहे है।
भगवान गणेश और संतोषी माँ की उत्पत्ति की कहानी
मृत्यु के देवता यम और बहन यमुना की कहानी।
0 टिप्पणियाँ