ख़ुशबू की कीमत
एक गाँव में दो हलवाई थे। दोनो की दुकाने एक दुसरे से सटकर पास-पास में ही थी। दोनो दुकानो में एक जैसे व्यंजन बनते थे। और यह बात ग्राहकों को थोड़ा उलझन में डाल देती कि किसकी दुकान से व्यंजन खरीदे जाएं ।
"हरीश" नामक हलवाई थोड़ा ज्यादा घमंडी और चालाक था, वहीं "भोला हलवाई " बहुत ही शालीन और समझदार था। इन दोनो के इस स्वभाव से सभी परिचित थे। एक दिन हरीश ने देखा कि भोला की दुकान पर ग्राहकों की लाइन लगी है। " हरीश हलवाई " से रहा नहीं गया और उसने चुपके से पता लगाया कि "भोला" की दुकान पर देशी घी में बना गाजर का हलवा बना है, जिसके लिए ग्राहकों की इतनी लंबी लाइन लगी हुई है।
" हरीश " ने मन ही मन कुछ योजना बनाई और दो दिन बाद ही स्वयं की दुकान पर ""देशी घी में बना मूंग हलवा"" का बोर्ड लगा दिया। किंतु लोगो की पहली पसंद अभी भी गाजर का हलवा ही था। अभी भी ग्राहकों की लाइन भोला की दुकान पर ही ज़्यादा रहती।
अब हरीश ने भोला के प्रति अपनी ईर्ष्या के चलते मन ही मन नई योजना बनाई और भोला की दुकान के सामने जाकर ज़ोर ज़ोर से चिल्लाते हुए बोलने लगा -- क्यूँ रे भोला ! तु रोज "देशी घी में बने मूंग के हलवे" की ख़ुशबू सूंघता है और इस ख़ुशबू का मोल भी नहीं देता है। तु सीधे तरीके से ख़ुशबू की कीमत चुका दे, वरना मामला राजा के पास ले जाऊंगा। हरीश ज़ोर ज़ोर से चिल्लाते हुएं भोला से लड़ने लगा। आस-पास के लोगो ने भी इस तरह का मामला पहली बार ही देखा था तो आस-पास बहुत भीड़ एकत्रित हो चुकि थी। मामला अब राजा के समक्ष पहुंच चुका था। इस मामले की खबर दोनो हलवाईयों के घरों तक चली गई और दोनो के परिवारजन भी महल पहुंचे ।
राजा ने भोला से पूछा -- भोला, क्या तुम वाकई "मूँग के हलवे की ख़ुशबू" सूंघते हो ??
ईमानदार भोला बोला -- हाँ महाराज! ख़ुशबू तो मुझे आती है। महाराज ! परंतु यह तो स्वाभाविक ही है और खुशबू मैं लेता नहीं बल्कि खुशबू खुद ब खुद मेरी नाक तक आ जाती है।
हरीश ने तपाक से कहा --- अरे! तो क्या हुआ अगर ख़ुशबू तुम्हारे पास आती है तो तुम्हें उसे नहीं सूंघना चाहिए । तुम्हें तो इसकी क़ीमत चुकानी ही पड़ेगी ।
राजा ने भोला से पूछा -- क्या तुम कुछ कहना चाहते हो ? तुम भी अपना पक्ष रखों। ....... राजा की बात सुनकर भोला कुछ ना बोल पाया और उसके नेत्रों से आँसू बह निकले। इतने में हीं भोला का बेटा आगे आया और बोला -- महाराज! मैं अपने पिता की तरफ से ख़ुशबू की कीमत देने को तैयार हूँ । मुझे बताइए महाराज ख़ुशबू की क्या कीमत है ?
"भोला" बिच में ही अपने पुत्र को टोकटे हुएं बोला -- नहीं, नहीं बेटा! तुम कहाँ से पैसे लाओगे। तुम इन सब मामलो से दूर रहों ।
भोला का बेटा बोला -- अरे पिताजी ! जब हम आप लोगो के विवाद को सुनकर राजमहल आ रहें थे, तभी मैंने कुछ पैसे एकत्रित किये और सीधे यहाँ चला आया। आप फिक्र ना करें, मैं सब संभाल लूंगा ।
बेटे की बात सुनकर राजा भी उत्साहित हुएं कि देखते है आखिर यह बालक ख़ुशबू की कितनी कीमत अदा कर पाता है। इधर हरीश फूला नहीं समा रहा था कि कैसे मूर्ख लोग है, आज तो इनसे अच्छी कीमत वसूल लुंगा।
हरीश बोला --- "ख़ुशबू की कीमत" दो सो अशर्फी है। "राजाजी" आप मुझे सो अशर्फी दिलवा दीजिए।
राजा ने भोला के बेटे को आदेश दिया कि वो हरीश को दो सो अशर्फी " ख़ुशबू की कीमत" के रूप में दे देवें ।
भोला का बेटा बोला ...... तो लीजिए चाचाजी, इस अशर्फी की कनक को दो सो बार सुन लीजिए और हिसाब बराबर कीजिए । ........... यह कहते हुए भोला का बेटा "हरीश चाचाजी" के पास जाकर अशर्फी खनखाने लगा।
हरीश ने बिच मे ही टोकते हुएं कहा -- यह क्या मज़ाक है ? तुम तो अशर्फी की खनक सुना रहें हो ।
भोला का बेटा बोला -- हाँ चाचाजी । जिस तरह से "मूंग के हलवे" की ख़ुशबू सूंघने मात्र से उसका मूल्य लग जाता है, उसी तरह इन अशर्फी की खनक को सुनने मात्र से कीमत अदा हो सकती है। और यही ख़ुशबू की कीमत है।
हरीश बोला -- अरे ! तो इन खनक को मैं भला कैसे रख पाऊंगा । जो चीज दिखाई देती है, जिसे छूकर महसूस किया जाता है। उसी चीज को हम अपने पास रख सकते है।
भोला का बेटा बोला --- बस मैं भी तो आपको यहीं बताना चाहता हूँ कि जब "मूंग के हलवे की ख़ुशबू" जो कि दिखाई नहीं देती, जिस ख़ुशबू को छूकर महसूस नहीं किया जा सकता, जिस ख़ुशबू को कोई अपने पास संजोकर नहीं रख सकता, जिसका कोई आकार-प्रकार और भार नहीं है, तो फिर उसका मोल भला कैसे आंका जा सकता है। क्या आप हवा को माप कर उसका मोल चुका सकते है क्या ?? ....... "" किसी ख़ुशबू का मोल तो अशर्फी की खनक ही सकता है।""
भोला के बेटे की बात सुनकर "हरीश" की नजरें झुक गई क्योंकि वह जानता था कि उसने यह सब कुछ "भोला" को निचा दिखाने और ईष्या के चलते किया।
राजा भोला के बेटे की बुद्धिमानी से खुश हुएं, खूब प्रंशसा की और उन्होंने उसे खूब सारा धन बतौर ईनाम में दिया ।
नैतिक शिक्षा --
किसी को बेवजह परेशान करना अच्छा नहीं होता है। चालाकी से धन की लालसा रखने वाले को अंत में हाथ कुछ नहीं लगता है।
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