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एक सवाल, दो जवाब

 

                     एक सवाल, दो जवाब


एक बार एक विद्वान पंडित अपने आश्रम में प्रवचन दे रहें थे। तभी एक व्यक्ति आया और पूछने लगा -- "महाराज"  इस गाँव में  कैसे लोग रहते है ? दरअसल मैं कही अन्यत्र रहने की सोच रहा हूँ और आपका आश्रम देखकर व प्रवचन सुनकर मेरा मन इसी गाँव में रहने को कर रहा है।

पंडितजी ने पूछा -- पहले यह बताओ कि अभी जहाँ तुम रहते हो वहाँ किस प्रकार के लोग रहते है ??

मत पूछिए वहाँ तो बहुत बेमान, कपटी और दुष्ट लोग रहते है, "महाराज" ।  

पंडितजी ने पुनः पूछा -- क्या तुम उनमे से किसी को भी पसंद नहीं करते हो ?? वहाँ कोई तो होगा जो तुम्हें पसंद हो ??

व्यक्ति बोला --  नहीं महाराज, मैं  वहां किसी को भी पसंद नहीं करता हूँ । ना कोई व्यक्ति, ना जानवर और ना कोई पेड-पोधे। आप तो मुझे इस स्थान के बारे में बताएं महाराज कि कैसे लोग यहाँ रहते है ?

पंडितजी बोले -- यहाँ भी तुम्हारे गाँव के लोगो की तरह ही बेमान, कपटी और दुष्ट  लोग रहते है। यह स्थान तुम्हारे रहने लायक नहीं है।.......

 पंडितजी की बात सुनकर वह व्यक्ति वहां से चला गया।

चार दिनो बाद एक अन्य व्यक्ति आया और पंडितजी से पूछने लगा कि पंडितजी आप  सर्वज्ञानी है, कृपया मेरा मार्गदर्शन करे और  मुझे बताए कि इस गाँव में किस तरह के लोग रहते है। मैं  अपने व्यापार को बढ़ाने हेतु इस गाँव में रहने की सोच रहा हूँ ।

पंडितजी मुस्कुराते हुए बोले -- पहले यह बताओ कि अभी जिस गाँव में तुम रहते हो, वहां किस प्रकार के लोग रहते है ??

दूसरा व्यक्ति बोला -- जहाँ मै अभी रहता हूँ, वहाँ तो बहुत ही सभ्य, ईमानदार, शिष्टाचारी, दयालु और अच्छे लोग रहते है।

 दूसरे व्यक्ति की बात सुनकर पंडितजी बोले ----   हाँ भाई !  यहाँ इस गाँव में भी बहुत ही सुलझे, ईमानदार, शिष्टाचारी और नेक दिल  लोग रहते है।

पंडितजी की बात सुनकर व्यक्ति प्रसन्न होकर वहाँ से चला गया।

 ........ किंतु पंडितजी के शिष्यों  और आस पास उपस्थित रहने वाले लोगो से रहा नहीं गया और उन्होंने पंडितजी से पूछा -- महाराज ! हम सभी को आपकी यह बात समझ नहीं आ रहीं  है कि अभी चार दिनो पहले एक व्यक्ति ने इस स्थान के लोगो के बारे में पूछा तो आपने यहाँ के लोगो को बुरा बताया और जब दूसरे व्यक्ति ने इसी स्थान के लोगो के बारें में पूछा तो आपने यहाँ के लोगो को बहुत ही अच्छा बताया । ....... एक ही सवाल के दो अलग जवाब क्यूं महाराज  ??

पंडितजी मुस्कुराते हुए बोले -- बहुत सी बार हम चीजों को वैसे नहीं देखते जैसी वो होती है, बल्कि उन्हें हम ऐसे देखते है जैसे हम खुद उसे देखना चाहते है। हर जगह हर प्रकार के लोग रहते है। यह तो हम पर निर्भर करता है की हम किस तरह के लोगो को देखना चाहते है।  पहला व्यक्ति सभी में बुराईयां ही देखता है। तभी तो उसे गाँव में एक भी इंसान पसंद नहीं है। 

 .... हम स्वयं भी किसी ना किसी प्रकार की बुराई से युक्त है। पूरी तरह बुराईयों से मुक्त तो इस संपूर्ण पृथ्वी पर शायद ही कोई हो, तो फिर ऐसी स्थिति में  हम सभी को एक-दूसरे के दोषों को नजरअंदाज करना ही उचित होता है अन्यथा सदैव दूसरों में दोष ढूंढने  वाला व्यक्ति फिर चाहे कही भी चला जाएं वह कही भी सुख-चेन से नहीं रह पाएंगा। जिसका दृष्टिकोण जैसा होता है, उसकी दृष्टी भी वैसी होती है इसलिए मैंने एक ही सवाल के दो अलग-अलग जवाब दिए है।


नैतिक शिक्षा  --

यदि हम एक-दूसरें की छोटी-छोटी बुराइयों को नजरअंदाज नहीं करेंगे तो हमारा कही भी सुखी रहना संभव नहीं है। अतः आवश्यक है कि एक-दूसरें की छोटी-छोटी कमियों और बुराइयों को नजरअंदाज कर दिया जाएं ।




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