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चार सीखें

                                

                       चार सीखें


एक बहुत ही प्रतापी राजा थे। राजा बहुत न्यायप्रिय और दूरदर्शी  व्यक्ति थे। उनके तीन पुत्र थे। राजा समय-समय पर अपने तीनो पुत्रों का मार्गदर्शन करते रहते थे। एक बार राजा ने अपने पुत्रों को बुलाया और पुत्रों से कहा कि हमारे राज्य में नाशपती का कोई वृक्ष नहीं है।  मैं  चाहता हूँ कि तुम तीनो  चार-चार महीने के अंतराल में इस वृक्ष की तलाश में जाओ और पता लगाओ कि यह वृक्ष कैसा होता है ।

राजा के आज्ञाकारी पुत्रों ने अपने पिता के कहे अनुसार चार-चार महिनों के अंतराल में नाशपती के वृक्ष की तलाश की । कुछ समय पश्चात तीनो ही राजा द्वारा दिये समय अनुसार राजदरबार में  पुनः उपस्थित हुए । 

राजा ने पुत्रों से पूछा  ---- बताओ तुम लोगो को यात्रा के दौरान नाशपती का वृक्ष मिला या नही ? और मिला तो किस प्रकार का वृक्ष मिला ?

पहला पुत्र बोला -- "पिताजी वह पेड़ तो बिल्कुल तेढ़ा-मेढ़ा और सुखा हुआ होता है।"

 दूसरा पुत्र बोला ---   "नहीं, नहीं पिताजी वह पेड़ तो हरा-भरा था, लेकिन उस पर एक भी फल नहीं लगा था।"

तीसरा बोला ---  "भैया" लगता है आप लोगो ने कोई गलत पेड़ देख लिया क्योंकि  मैंने जो नाशपती का पेड़ देखा, वो तो बहुत ही बढ़िया और फलों से लदा हुआ था।


तीनो पुत्रों ने नाशपती का वृक्ष देखा, लेकिन तीनो ही वृक्ष के बारे में अलग-अलग विवरण देते-देते आपस  में बहस करने लगे। तभी राजा ने तीनो को बिच में ही टोकते हुए कहा -- पुत्रों तुम तीनो ने ही नाशपती के वृक्ष के बारें में सही विवरण दिया है।  मैंने जानबूझकर ही तुम लोगो को अलग-अलग मौसम में नाशपती के वृक्ष की तलाश हेतु भेजा था, ताकि मैं  तुम लोगो को कुछ समझा सकूं । 

पुत्रों ने पूछा -- आप हमें क्या समझाना चाहते है पिताजी ??

तभी राजा बोले --  तुम तीनो को मैं  इससे "चार सीखें" सीखना चाहता हूँ । यह "चार  सीखें" हमेशा अपने जीवन-व्यवहार में शामिल करो। 

मैं  चाहता हूँ कि तुम तीनो इस अनुभव के आधार पर चार सीखों को हमेशा के लिए गाँठ बाँध लो  ----


पहली सीख  --  बिना कुछ जाने समझे किसी बात की पुष्टि ना करें । किसी चीज के बारे में  सही और पुर्ण जानकारी चाहिए, तो तुम्हें उसे लम्बे समय तक देखना-परखना चाहिए । फिर चाहे वो कोई विषय हो, वस्तु  या फिर कोई व्यक्ति ही क्यूं ना हो। जानने और समझने के बाद ही निर्णय ले।


दूसरी सीख --  हर मौसम एक सा नहीं होता, जिस प्रकार वृक्ष मौसमानुसार सूखता और हरा-भरा या फलों से लदा रहता है, उसी प्रकार मनुष्य के जीवन में भी उतार-चढ़ाव आते रहते है, अतः अगर तुम कभी भी बुरे दौर से गुजर रहे हो तो अपनी हिम्मत और धैर्य बनाये रखो, समय अवश्य बदलता है। 


तीसरी सीख --  दुनियां की हर घटना कुछ ना कुछ सबक अवश्य ही सिखाती है। चाहें फिर वह मौसम का बदलाव हो या जीवन का उतार-चढ़ाव, सबसे अनुभव प्राप्त करों।


चौथी सीख --  अपनी बात को ही सही मानकर उस पर अड़े मत रहो, अपना  दिमाग खोलो और दूसरो के विचारो को भी जानो। यह संसार ज्ञान से भरा पड़ा है, चाह कर भी तुम अकेले सारा ज्ञान अर्जित नहीं  कर सकते इसलिए भ्रम की स्थिति में  किसी ज्ञानी व्यक्ति और अनुभवी व्यक्ति से सलाह लेने में  संकोच मत करो।


नैतिक शिक्षा -- 

जीवन को संवारने के लिए हमारे जीवन में  अच्छी सिखों को मानना और उसे व्यवहार में लाना आवश्यक है। सही और अच्छी सीखें ही हमारे जीवन को सशक्त बनाती है।  


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