सबसे श्रेष्ठ कौन ?
भूख, प्यास, निंद और आशा नामक चार बहने थी । एक बार चारो में विवाद हो गया। चारो स्वयं को श्रेष्ठ बता रहीं थी। इन चारो का आपसी विवाद बहुत बढ़ गया । आस-पास वालो ने सलाह दी कि मामले का निपटारा राज्य के राजा ही करें तो उचित होगा।
चारो लड़ती-झगड़ती हुई राजा के दरबार पहुंची और राजा के समक्ष चारो ने अपनी बात रखी। राजा ने कहा-- आप बारी-बारी से अपनी श्रेष्ठता साबित करें ताकि हम सभी सही निर्णय ले सकें ।
सबसे पहले "भूख" ने कहा -- महाराज ! सबसे श्रेष्ठ मैं ही हूँ , क्योंकि मेरे कारण ही घरों में चूल्हे जलते है। और लोग बड़े आदर पूर्वक मुझे भोजन की थाली सजाकर देते है,तब जाकर मैं भोजन ग्रहण करती हूँ अन्यथा मैं तो कुछ खाऊं ही नहीं । सबको मेरी ही जरूरत है।
राजा ने इस बात की पुष्टि हेतु सैनिको से कहा कि पूरे राज्य में मुनादी करा दो कि कोई भी अपने घर में चूल्हे ना जलाये, भोजन ना बनाये और थाल ना सजाये । ...... फिर देखते है जब भूख को भूख लगेंगी तो भूख कहाँ जाएगी ??
सारा दिन निकल गया , आधी रात निकल गई और आखीरकार स्वयं भूख को ही भूख लगी। उसने यहाँ-वहाँ भोजन खोजा लेकिन उसे कुछ ना मिला । लाचार होकर भूख किसी घर में रखे हुए बासी रोटी के टुकड़े ही खाने लगी।
"प्यास" ने देखा तो दौड़ी-दौड़ी राजा के पास गई और बोली -- देखा महाराज ! भूख हार गई, वह तो बासी रोटी के टुकड़े खा रही है। मैं ही सबसे श्रेष्ठ हूँ महाराज। आप मुझे ही श्रेष्ठ घोषित कर दीजिए । मेरे कारण ही लोग कुएँ और तालाब बनवाते है । वे बढ़िया बरतनों में पानी भरकर रखते है और जब वे आदरपूर्वक मुझे गिलास भरकर पानी देते है और मुझे पानी पिलाते है, तब मैं उसे पीती हूँ अन्यथा तो मैं पीऊँ ही नहीं ।
राजा ने कहा -- सैनिको जाओ और राज्य भर में ऐलान करा दो कि कोई भी अपने घर में पानी भरकर ना रखे। कोई किसी अनजान को गिलास भर कर भी पानी ना दे। कुएँ और तालाबों पर पहरे बैठा दो। ......... फिर देखते है कि प्यास को जब प्यास लगेगी तो जाएगी कहाँ ??
सारा दिन बीता, आधी रात बीती "प्यास" को प्यास लगी। वह यहाँ-वहाँ दौड़ी लेकिन पानी की कही एक बूँद भी न मिली। लाचार होकर "प्यास" एक डबरे पर झुककर पानी पीने लगी। प्यास को पानी पीते " निंद" ने देख लिया।
"निंद " दौड़ी-दौड़ी राजा के पास पहुंची और बोली -- देखिए महाराज ! "प्यास" तो हार गई, वह तो डबरे का पानी पी रही है। आप मुझे श्रेष्ठ घोषित कर दीजिए । मैं ही सबसे श्रेष्ठ हूँ ।
राजा ने कहा -- पहले तुम्हारी श्रेष्ठता की जाँच तो कर ले।
निंद बोली -- मैं इसलिए श्रेष्ठ हूँ क्योंकि लोग मेरे लिए पलंग बनवाते है, मेरे लिए बिस्तर लगवाते है। अगर मैं ना रहूं तो आराम केसे पाएंगे ?? लोग मुझे बढ़िया बिस्तर लगाकर देते है, तभी मैं सोती हूँ अन्यथा तो मैं सोऊँ ही नहीं ।
राजा ने सैनिको को आदेश दिया कि जाकर पूरे राज्य में ऐलान कर दो कि आज कोई पलंग ना लगवाये, बिस्तर ना बिछाए और गद्दे भी ना डलवाए। ....... फिर देखते है निंद को निंद आएगी तो क्या करेगी ??
सारा दिन बीता, आधी रात बीती । "निंद" को निंद आने लगी। उसने यहाँ-वहाँ सब जगह तलाश की परंतु कही भी उसे बिस्तर बिछा हुआ नहीं मिला। थक-हार कर "निंद" उबड़-खाबड़ धरती पर ही सो गई।
"आशा" ने देखा कि " निंद" तो सो रहीं है तो उसने यह खबर महाराज को देते हुएं कहा -- देखा महाराज ! "निंद" तो उबड़-खाबड़ धरती पर ही सो रहीं है अतः अब मैं ही सबसे श्रेष्ठ हूँ ।
राजा ने पूछा-- वो कैसे ?
आशा बोली -- लोग मेरे खातिर ही काम करते है। नौकरी-धंधा करते है। मेहनत - मजदूरी करते है और आशा के दीप को बूझने नहीं देते है। एक मैं हूँ जो हर परिस्थिति में इंसान को जीवित रखती हूँ । मेरी अनुपस्थिति में तो ना कोई कार्य करेंगा, ना कोई भोजन करेगा और ना ही कोई आराम से सो सकेंगा। आशा की वजह से ही लोग जीवित है।
राजा ने सैनिकों से कहा कि जाओ और पूरे राज्य में ऐलान कर दो कि कोई भी काम पर ना जाएं, नौकरी करने भी ना जाएं, कोई धंधा, मेहनत व मजदूरी भी ना करें तथा आशा का दीप ना जलाये। ...... देखते है कि "आशा" को जब आस जागेगी तो वह कहाँ जाएगी ??
सारा दिन बीता, आधी रात बीती "आशा" की आस जाग उठीं । "आशा" ने यहाँ-वहाँ देखा, चारो ओर अंधकार छाया था। सन्नाटा पसरा था। "आशा" ईधर- ऊधर नजरे दौडा ही रही थी कि अचानक आशा ने देखा कि एक कुम्हार की झोपड़ी में रोशनी दिखाई दे रहीं थी। आशा झोपड़ी में गई और देखा कि एक कुम्हार दीपक के प्रकाश में भी काम कर रहा था। आशा वहाँ जाकर टिक गई।
कुछ समय पश्चात राजा को सूचना मिली कि एक कुम्हार दीपक की टिमटिमाती हुई रोशनी में भी "कल सब अच्छा होगा" की आस लिए काम कर रहा था।
राजा खुश हुए हुए कि उनके राज्य में आशावादी कुम्हार है। राजा ने "आशा" को बुलवाया और उसे सम्मानित करते हुए कहा --- " आशा " तुम सबसे बड़ी हो क्योंकि जिन लोगो ने आशा का दामन थामे रखा, वह कभी निराश नहीं हुए और आगे बढ़ते गए । इसलिए "" आशा"" ही सबसे श्रेष्ठ है।
नैतिक शिक्षा --
व्यक्ति के अंदर "आशा"का होना बहुत जरूरी है, क्योंकि आशावादी व्यक्ति ही विपरीत परिस्थितियों में भी जितने का साहस रखता है। इसलिए अपने अंदर आशा का दीपक सदैव जलाए रखे मतलब आशावादी बने, निराशावादी नहीं ।
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