Advertisement

Responsive Advertisement

मेंढ़क और चूहे की दोस्ती


               मेंढ़क और चूहे की दोस्ती

जंगल के तालाब में एक मेंढ़क रहता था। इस तालाब में  मेंढ़क अकेला रहता था। अकेले रहते-रहते मेंढ़क ऊब गया था। अक्सर वह आसमान की तरफ देखकर कहता कि -- हे भगवान मेरा भी कोई दोस्त भेज दो, मैं अकेले रहते हुए ऊब चुका हूँ ।

इसी तालाब के समीप एक पेड़ के निचे चूहा बिल बनाकर रहता था। एक दिन चूहे ने मेंढ़क को जोर-जोर से रोता देखा तो उसके समीप जाकर पूछा  क्या हुआ भाई ?? क्यूं  इस  तरह रो रहे हो ?? .........  मेंढक ने कहा -- मेरा कोई दोस्त नहीं । मैं रोज भगवान से भी प्रार्थना करता हूँ  लेकिन भगवान भी मेरे लिए दोस्त नहीं भेजते। यह भी कोई जीवन है, जहां बातचीत करने के लिए भी कोई नहीं है।  ............  चूहा बहुत ही हंसमुख था। उसने मुस्कुराते हुए कहा -- अरे ! चलो आज से मैं  तुम्हारा दोस्त हूँ । ........  फिर क्या चूहा रोज तालाब के किनारे आकर मेंढक से बाते करने लगा । दोनो खूब गपशप मारते । ऐसे ही कई दिन बित गए । .......... एक दिन मेंढ़क ने कहा -- दोस्त क्यूं ना हम दोनो दोस्त कुछ ऐसा करें कि हमारी दोस्ती के चर्चे चारो ओर हो जाएं ।  इसके लिए  एक ही रस्सी का एक छोर मैं  अपने पैरो में बांध लेता हूँ और दूसरा छोर तुम अपने पैरो में बांध लो, जिससे जब भी मुझे  तुम्हें बुलाना होगा तो मैं पैर से रस्सी खींच लूंगा और तुम्हें पता चल जाएंगा कि मेने तुम्हें बुलाया है। ठीक इसी तरह जब भी तुम्हारा मन करें तुम अपने पैरो की रस्सी खींच लेना जिससे मुझे पता चल जाएंगा कि तुमने मुझे याद किया है और मैं आ जाऊंगा।

चूहे ने भी इस बात की सहमति दे दी और दोनो ने एक लंबी रस्सी ली और रस्सी का एक भाग मेंढ़क ने तो दूसरा भाग चूहे ने अपने-अपने पैरो में कसकर बांध लिया।  इन दोनो की हरकतें एक चील बहुत दिनो से देख रही थी और मौका ही ढूंढ रही थी कि कब इन दोनो को अपना भोजन बनाया जाएं। एक दिन चील तालाब के ऊपर ही उड़ रहीं  थी कि उसने देखा कि चूहा उछल कूद करता अपने पैरो की रस्सी जोर से खींचता हुआ आगे को बढ़ा जा रहा था, जिससे मेंढ़क भी गिरता पड़ता रस्सी से खींचाता हुआ तालाब के बाहर आ गया ।  इससे पहले कि मेंढ़क  चूहे को रोक पाता चूहे ने फिर से जोर की छलांग लगा दी। इस बार तो मेंढ़क लुढ़क गया। चील ने मौका देखा और मेढ़क को मुहं मे भर कर उड़ गई। चूकि चूहे और मेंढ़क के पैर एक ही रस्सी से बंधे हुए थे इसलिए मेंढ़क के साथ-साथ चूहे को भी चील ले उड़ी और दोनो ही दोस्त को चील का भोजन बनना ही पड़ा । चील मन ही मन दोनो की मूर्खता पर मुस्करा रहीं थी।

नैतिक शिक्षा --

कभी दिखावा नहीं करना चाहिए व अपनी सतर्कता के साथ ही कोई भी निर्णय लेना चाहिए । मेंढ़क व चूहे ने अपने दोस्ती के चर्चे चारो ओर फैलाने के लिए अपने पैरो में रस्सी बांधी थी। यदि दोनो दूसरों को दिखाने के चक्कर में पड़कर कर इस तरह का निर्णय नहीं लेते तो शायद आज दोनो दोस्त जीवित रहते।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ