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"मेहमाननवाजी"


                      मेहमाननवाजी

एक गाँव में रामू नामक एक भोला-भाला किसान रहा करता था। रामू के परिवार में उसकी बीवी और दो बच्चें थे। रामू के पास बहुत बड़ा खेत था, जिस पर खेती करके रामू अच्छा मुनाफा कमा लेता था। रामू सामाजिक और आर्थिक रूप से सम्पन्न था। .............  यूं तो रामू का परिवार सभी प्रकार से सुखी और खुशहाल था, लेकिन परिवार के सदस्य रामू की "मेहमाननवाजी" की आदत से बहुत परेशान रहते थे। .....  आए दिन रामू किसी ना किसी को अपने घर भोजन हेतु आमंत्रित कर देता। रिश्तेदारों और पड़ोसीयों का ताता तो रामू के घर पर लगा ही रहता था। रामू को तो मेहमाननवाजी का इतना शौक था कि वह राह चलते हुए राहगीरों को भी मेहमान बनाकर ले आता और खूब खातीरदारी करता। परन्तु रामू की इस आदत से परिवार के सदस्य परेशान हो गए थे। आए दिन नये मेहमान के आने से रामू की बीवी का सारा दिन भोजन बनाने और साफ-सफाई में बीतता। बच्चों की पढ़ाई भी मेहमानों के बार-बार आने से बाधित होती। रहा सहा मेहमानों पर होने से वाले बेमतलब के खर्चों से रामू की बीवी परेशान रहने लगी। वह रामू को बहुत समझाने की कोशिश करती लेकिन रामू नहीं मानता। ............. इस बार दो-तीन दिन हो गए थे, रामू के घर कोई मेहमान नहीं आया। रामू तो बेचेन हो गया, उसे सारा घर सूना-सूना सा लग रहा था। बेमन से रामू खेत पर काम करने गया। अचानक रामू की नजर खेत के समीप के रास्ते पर से गुजर रहे दो राहगीरों पर पड़ी। रामू ने आवाज़ लगाकर पूछा -- कहो भाई ! कहाँ जा रहें हो। राहगीरों ने थोड़ा ठहर कर माथे से पसीना पौंछते हुए कहा -- भाई पास के ही गाँव में काम से आए थे। पुनः अपने गाँव जा रहें है। .........राहगीरों की बात सुनकर रामू ने उन्हें अपने घर पर भोजन हेतु आमंत्रित किया । राहगीर बड़े  आश्चर्यचकित हुए कि बिना जान-पहचान के कोई केसे अपने घर आमंत्रित कर सकता है फिर भी राहगीरों ने भी सहर्ष स्वीकृति दे दी। ...........   रामू दोनो राहगीरों को अपने साथ घर पर ले आया। ना चाहते हुए भी रामू की बीवी को मेहमानों की खातीरदारी मे जुट़ना पड़ रहा था। परंतु  रामू की बीवी ने तो इस बार कमर कस ली थी कि इस बार वह परेशान नहीं होगी। उसे एक युक्ति सूझी और उसने रामू को बाजार मिठाई लाने के लिए भेज दिया। ईधर रामू की बीवी ने मेहमानों के सामने ओखली-मूसली रखी और इस पर फूल माला, प्रसाद आदि चढ़ाकर दिपक से आरती ऊतारी और दोनो मेहमानों को प्रसाद देते हुए बोली -- यह लो भईया, प्रसाद ग्रहण करें। मेहमानों ने प्रसाद लेते हुए पूछा-- यह केसी पूजा है, जिसमें ओखली-मूसली की पूजा होती है ?? 🤔🤔 ........ रामू की बीवी ने कहा -- " यह तो मेरे पति के भगवान है।" जब भी हमारे घर कोई मेहमान आता है तो मेरे पति इस मूसली से ही उसका स्वागत करते है। वे पहले मेहमानों को आमंत्रित करते है फिर खूब आवभगत करते और फिर इसी मूसली से मेहमानों की आरती ऊतार कर एक कमरे में उन्हें बंद कर उनकी बहुत धुनाई करते है।   ........  यह सुनकर मेहमानों के तो होश उड़ गए उन्हें लगा रामू की बीवी वाकई सच बोल रहीं है, क्योंकि ऐसे बिना जान पहचान के कोई केसे बेमतलब आमंत्रित कर सकता है। अब उन्हें सारा मांजरा समझ आ रहा था। ड़र के मारे मेहमान घबरा रहें थे। उनके हाथ कांपने लगे सोचा, "लगता है किसी डाकू के घर आ बैठे है।" मेहमान मौका देख कर वहां से जल्दी से भाग खड़े हुए। .... रास्ते में रामू मिल गया, जो कि मिठाई लेकर पुनः घर लौट रहा था परंतु उसे देखकर तो मेहमानों ने तो ओर तेज दौड़ लगा दी। ....... ईधर रामू जल्दी से घर के अंदर आया और अपनी बीवी से मेहमानों के वापस जाने का कारण पूछने लगा तो बीवी ने कहा -- अरे ! आप यह मूसली उन्हें  दे आइए । उन्होंने मुझसे मूसली मांगी थी लेकिन मैंने देने से मना कर दिया। शायद इसी बात से नाराज होकर आपके मेहमान यहाँ से चले गए। मुझे तो दोनो बड़े भले लग रहे थे, आप दौड़ कर यह मूसली उन्हें दे आइए । ......  रामू ने भी आव देखा ना ताव मेहमानों की खातीरदारी हेतु उन्हें  मनाने के उद्देश्य से रामू ने हाथ में  मूसली पकड़ी और मेहमानों के पीछे तेज दौड़ लगा दी। रामू आवाज देता हुआ दौड़ा -- रूको,रूको, ठहरो,ठहरो! ....... ईधर मेहमानों  ने आवाज़ सुनकर पीछे मुड़ कर देखा तो रामू के हाथ में मूसली दिखी। यह देख मेहमानों ने अपनी रफ़्तार ओर तेज़ कर ली। गिरते पड़ते पीछे मुड़कर देखते हुए मेहमान बेतहाशा  दौड़े जा रहे थे। और अंततः दोनो मेहमान रामू की आँखों के सामने से ओझल हो गए  .......  रामू आवाज़ देता रह गया और मन ही मन मेहमानों के इस तरह भागने की वज़ह ढुढंता हुआ घर वापस लौट आया। ..... अब तो जब भी बिना जान-पहचान के मेहमान घर आते तो रामू की बीवी इसी तरह की घटना दौहराने लगी। अब तो रामू भी समझ चुका था कि यह उसकी बीवी की ही योजना चल रही है मेहमानों को भगाने की। अंततः रामू की बीवी ने रामू को सब सच बता दिया और रामू को इस तरह बिना जान-पहचान के मेहमानों को घर बुलाने की इस आदत से होने वाले ख़तरे से अवगत किया। बिन जान पहचान के अनजान लोगो को घर आमंत्रित करना परिवार के सदस्यों के लिए घातक साबित हो सकता है। रामू की बीवी ने सख्त तौर पर बेमतलब की मेममाननवाजी करने से मना कर दिया। रामू को भी अपनी गलती का अहसास हो गया था। ...... रामू की मेममाननवाजी तो अब भी कभी कभार जारी रहती है परंतु अब इसका तरिका बदल चुका था। अब रामू किसी जरूरतमंद को भोजन और जरूरत का साधन उपलब्ध करा देता, इससे रामू को पहले से ज्यादा सुखद अनुभूति होने लगी थी। 

नैतिक शिक्षा --

भलाई सोच-समझ कर ही करनी चाहिए।   हमें दयालु होना चाहिए लेकिन सुरक्षा के दायरें में रह कर ही दयालु बनें। हो सकें तो   ज़रूरतमंदों की सहायता करें, यही सही मायने में सच्ची मेममाननवाजी और सच्ची मानवता है ।



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