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"पत्थर का दर्द" moral story

 



                      पत्थर का दर्द 

एक शिल्पकार मूर्ति बनाने के लिए पत्थर ढूँढने हेतु जंगल गया। वहां उसे एक पत्थर मूर्ति बनाने के लिए पसंद आया। इस पत्थर के साथ मूर्तिकार ने एक अन्य पत्थर भी साथ ले लिया। ......... जेसे ही मूर्तिकार ने मूर्ति बनाने हेतु पत्थर पर अपनी कारीगरी शुरू की तो छैनी और हथोड़े की चोट पत्थर सहन नहीं कर पा रहा था। पत्थर ने मूर्ति से कहा --  मुझको छोड़ दो। छैनी-हथोड़े की मार से मुझे दर्द हो रहा है। अगर तुम मुझे यूँ ही चोट़ पहुंचाते रहोगे तो मैं टूट कर बिखर जाऊंगा और तुम्हारे काम भी ना आ सकूंगा।

मूर्तिकार को पत्थर पर दया आ गई और इस पत्थर को ऐसे ही रहने दिया । उसने  दूसरा पत्थर लिया और उसको तराशना शुरू किया। इस पत्थर ने कुछ नहीं कहा और हथोड़े की मार भी सहन की।

कुछ ही दिनों में मूर्तिकार ने भगवान की एक बहुत ही सुंदर मूर्ति इस पत्थर से बना डाली। गाँव के लोग आये और इस सुंदर मूर्ति को मंदिर में स्थापित करने हेतु साथ ले जाने लगें। लोगो ने सोचा नारियल फोड़ने के लिए भी हमें एक पत्थर की आवश्यकता पड़ेगी, सो उन्होंने मूर्तिकार से पूछकर वहां रखे पत्थर को भी साथ ले लिया। यह वहीं पत्थर था, जिसने चोट सहन करने से मना कर दिया था। ...........       भगवान की मूर्ति को मंदिर में बडे ही मनमोहक व सुंदर तरीके से सजा दिया गया। और साथ में लाए नखरेले पत्थर को मूर्ति के सामने ही निचे रख दिया गया। ......... अब जब भी कोई  व्यक्ति पूजा करने आता तो मूर्ति पर फूल चढ़ाता, दूध चढ़ाता, मिठाई चढ़ाता और निचे रखे पत्थर पर नारियल फोड़ता। जब लोग उस पत्थर पर नारियल फोड़ते तो उसे दर्द होता,वह चिल्लाता। पर कोई उसको सुनने वाला नहीं था।

उस पत्थर ने भगवान की मूर्ति बने पत्थर से कहा -- तुम तो बड़े मजे से हो। लोग आते है तुम पर दूध, घी, मिठाई व फूल चढ़ाते है। और मुझ पर तो नारियल से वार करते, मेरी तो किस्मत ही खराब है। मुझ पर लोग नारियल फोड़ते है और मुझे दर्द देते है। ... मूर्ति बने पत्थर ने कहा -- जब शिल्पकार तुम पर कारीगरी कर रहा था, तब यदि उस समय तुम उसे ना रोकते और थोडा दर्द सहन कर लेते तो आज तुम मेरी जगह होते। क्योंकि मूर्तिकार की पहली पसंद तो तुम ही थे। ........ तुमने आसान रास्ता चुना और अब तुम दुख उठा रहें हो। परिस्थितियों की चोट ही हमें मजबूत बनाती है और हमारे जीवन को तराश कर हमें नया मुकाम देती है। .......   पहले पत्थर की बात सुनकर दूसरे पत्थर को अपनी गलती का अहसास हो चुका था। उसने कहा -- सही कहा भाई ! मैं हमेशा से ही कमजोर बनकर शिकायत करता रहा और बिना कुछ करें ही कुछ पाने की चाह ही आज मेरे दर्द का कारण बनी। अब मैं कभी शिकायत नहीं करूँगा और मेहनत से कभी नहीं ड़रूँगा।

नैतिक शिक्षा --

जीवन में शॉर्ट-कट यानी आसान रास्ता का चुनाव करना सदैव ही गलत ही होता है। यदि कुछ पाना है तो कठिनाईयों की चोट से ना डरे। यह कठिनाइयां ही हमें मजबूत बनाती है। 

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