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"आत्मविश्वास का चमत्कार"


                         आत्मविश्वास 

समर्थ शहर की बड़ी स्कूल में पढ़ता था। समर्थ होशियार तो था, परंतु परीक्षा के परिणाम में कभी अच्छे नम्बर ना ला पाता था।

चार दिन बाद ही समर्थ की वार्षिक परीक्षा होने वाली थी। समर्थ की तैयारी पूरी थी। हर बार की तरह इस बार भी समर्थ ने परीक्षा की तैयारी पहले ही कर ली थी।

समर्थ  के दादाजी कुछ दिनो के लिए शहर आए थे। समर्थ और दादाजी की आपस में  बहुत बनती थी। दादाजी समर्थ के कमरे में ही सोते थे। दादाजी ने देखा कि समर्थ  परीक्षा के लिए बहुत मेहनत कर रहा था, किंतु आज जब परीक्षा का दिन आया तो समर्थ  बहुत ही परेशान सा लग रहा था।

दादाजी ने समर्थ को पास बुलाया और पूछा -- क्या बात है बेटा ? .... तुम इतने परेशान क्यूं हो रहें हो। आज तो तुम्हारी परीक्षा है ना ??

समर्थ  बोला -- हाँ, दादाजी। आज परीक्षा है और पता नहीं परीक्षा वाले दिन मुझे बहुत डर लगता है। मुझे अच्छे नंबर कभी भी नहीं आते है।

दादाजी ने कुछ सोचा और कहा -- तुम घबराओ मत । मेरे पास एक चमत्कारी पेन है। इससे ही तुम परीक्षा में लिखना। पेन इतना चमत्कारी है कि तुम्हारे सारे जवाब सही जाएंगे। और तुम अव्वल नंबर से पास हो जाओगे। इस पेन की बदोलत ही तो तुम्हारे पापा अच्छे नंबर लाते थे और देखो उन्हें कितनी अच्छी पोस्ट पर नौकरी भी मिली है।

दादाजी की बातो को सुनकर समर्थ में आत्मविश्वास जाग गया कि इस बार तो वह अव्वल आ ही जाएंगा। 

फिर दादाजी उठें और सुन्दर सा एक पेन समर्थ को देते हुए बोले -- ध्यान रखना बेटा कि ये पेन उसी कापी में चमत्कार दिखाएगा, जिस पर प्रश्नो के उत्तर लिखे गए होगें ।

समर्थ खुश होकर परीक्षा देने गया। परीक्षा में  समर्थ ने सारे प्रश्नों के उत्तर आत्मविश्वास के साथ लिखें । इस बार कोई घबराहट नहीं थी। हर बार तो परीक्षा की घबराहट के कारण ही समर्थ आधा पेपर गलत कर आता था। परंतु इस बार ऐसा नहीं था। उसे फ़ेल होने का डर नहीं था, क्योकिं चमत्कारी पेन जो उसके पास में था।

समर्थ के सारे पेपर उम्मीद से ज्यादा अच्छे गए थे। इस बार समर्थ ने बहुत खुश होकर ध्यान से परीक्षा दी। 

कुछ दिनो बाद जब रिजल्ट आया तो समर्थ  अव्वल आया। सभी समर्थ को बधाईयाँ दे रहें थे। समर्थ घर पर आया और दौड़ते-दौड़ते दादाजी के गले लग गया। दादाजी के पैर छूकर बोला --  दादाजी आपके चमत्कारी पेन की वज़ह से पहली बार मैं कक्षा में अव्वल आया। थैंक्यू दादाजी ।

दादाजी मुस्कुराएं और बोले -- बेटा! यह चमत्कार पेन की वज़ह से नहीं,बल्कि तुम्हारी मेहनत की वज़ह से संभव हुआ है। मैंने तो बस तुम्हारी घबराहट देख कर इस सामान्य पेन को चमत्कारी पेन बता दिया, ताकि तुम्हें आत्मविश्वास बना रहें कि तुम इस बार अव्वल आओगे। ......  याद है - मैंने तुम्हें कहा भी था कि परीक्षा में काॅपी पर उत्तर लिखकर आने पर ही इस पेन का चमत्कार काम करता है। मेहनत तो तुमने ही की है, मैंने तो बस तुम्हें आत्मविश्वास का आभास कराया है। और इसी आत्मविश्वास के साथ तुमने बिना घबराहट परीक्षा दी।  ........ यह तो एक परीक्षा है, जिवन में ऐसी कई परीक्षाएं आती है और उन सभी परीक्षाओ का सामना हमेशा आत्मविश्वास के साथ करना चाहिए। ""परीक्षा का मतलब सिर्फ अव्वल आना ही नहीं होता है बल्कि परीक्षा का मतलब आत्मविश्वास के साथ चुनौतियों का सामना करना होता है। ........ हमारा यही आत्मविश्वास ही हमारे लिए एक चमत्कार है।""

दादाजी की बात सुनकर समर्थ ने कहा -- हाँ, दादाजी मैं आपकी बात हमेशा याद रखूगां। और हर चुनौतियों का सामना ड़र के साथ नहीं बल्कि आत्मविश्वास के साथ करूंगा ।

नैतिक शिक्षा 

जिवन की हर परीक्षा का सामना  आत्मविश्वास के साथ करना चाहिए। यदि हम हिम्मत और आत्मविश्वास के साथ चुनौतियों का सामना करते है तो हमें सफलता अवश्य ही मिलती है। हमारा आत्मविश्वास ही हमारे लिए एक चमत्कार की तरह काम करता है। 

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