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"हवा की सीख"

 
                    हवा की सीख

Hindi moral story for kids with moral / बच्चों के लिए हिन्दी नैतिक कहानी 

आज हवा चलते- चलते बहुत थक गई थी। हवा का मन कर रहा था कि कोई शान्त जगह मिल जाए, जहाँ कुछ देर वह आराम कर सकें। परंतु उसे कोई शान्त जगह नहीं मिल रही थी। हवा ने सोचा एक मैं ही हूँ,जिसके नसीब मे आराम नहीं। हवा अपने निरंतर चलते रहने से दुखी थी। उसे निरंतर एक ही  कार्य करने से झुंझलाहट हो रहीं थी। वह रूक कर आराम करना चाहतीं थी।
थोडी ही दूरी पर हवा को एक विशाल वृक्ष नजर आया और यहाँ सन्नाट भी था। हवा ने सोचा चलो यहीं आराम कर लेती हूँ । यही सोचते हुए हवा पेड़ों के झुरमुट की ओर बढ़ चली। पर यह क्या ........ ?? हवा का झोंका लगते ही पेड इधर-उधर झूक गया और हवा लुढ़कर दुसरी तरफ जा गिरी।
उफ्फ्फ ......  यहाँ तो बड़ी मुसीबत है, कहते हुए हवा उठीं। ........... इस बार हवा ने एक बगीचे में आराम करने का सोचा। पतझड़ का मौसम था। पूरे बगीचे में सुखे पत्ते फेले हुएं थे। यह देख हवा बहुत खुश हो गई। .....अरे वाह! ..  इन पत्तों के नरम गद्दे पर आराम करना कितना  सुखद होगा ! हवा तेजी से पत्तो पर आराम करने के लिये आगें बढ़ी। परंतु यह क्या ........?  हवा के पहुंचते ही सुखे पत्ते उछल-कूद करके दूर भागने लगें । 
इस बार हवा खीझ गई ।......... उड़ कर हवा एक बड़ी सी झील के समीप पहुंची। झील के नीले शांत पानी को देख हवा ने सोचा--  कितना शांत और स्वच्छ पानी है, कुछ देर मैं  यहीं आराम कर लेती हूँ। यहीं सोचते हुएं हवा पानी की ओर लपकी। हवा के समीप पहुंचते ही झील का पानी हिलोरे मारने लगा। पानी के तेज थपेडों की वजह से हवा को यहाँ से भी भागना पड़ा।...... हवा उदास मन से धीरे-धीरे चली जा रही थी कि अचानक से रास्ते पर उसे एक गुब्बारे वाला दिखाई दिया। हवा को एक उपाय सूझा और हवा जल्दी से एक गुब्बारें में जा घुसी। हवा बहुत खुश थी। तभी एक बच्चा आया और उसी गुब्बारे को खरीद कर ले गया, जिसमें हवा घुसी थी। उस दिन बच्चे का जन्मदिन था। बच्चे ने गुब्बारे को घर पर लटका दिया। थोड़ी देर तो हवा को गुब्बारे के अंदर अच्छा लगा परंतु बाद में उसे गुब्बारे के अंदर घुटन महसूस होने लगी। यहाँ तो हवा किसी की आवाज़ भी नहीं सुन पा रहीं  थी और ना ही कुछ देख पा रहीं थी। हवा ने गुब्बारे से बाहर आने की बहुत कोशिश की लेकिन हवा बाहर नहीं निकल पाई ।....... ईधर बच्चे के जन्मदिन के लिए बहुत से बच्चें आ चुके थे। खूब धूम-धडाका हो रहा था। केक कटते ही एक शरारती बच्चे ने गुब्बारे को कसकर दबा दिया। गुब्बारा फूटा - "फटाक" ..... इतनी तेज आवाजदार धमाके से हवा ड़र कर सहम गई। परंतु अगले ही क्षण वह स्वयं को गुब्बारे की केद से बाहर पाकर खुश हो उठी। हवा जल्दी से कमरे के एक कोने में जा खड़ी हो गई और घबराहट का पसीना पोंछते हुए मन ही मन सोचने लगी -- " कैद होकर आराम करने से अच्छा है कि मैं यूं ही घूमती फिरूं, मेरा काम हमेशा चलते रहना है और इसीमे मेरे साथ-साथ सभी की भलाई है। क्योंकि यदि मैं रूक गई तो पृथ्वी पर बहुत कुछ रूक जाएंगा। घूमना-फिरना क्या कम मजेदार है ??  यह कहते हुए हवा मुस्कराई और सरसराती हुई आगे बढ़ चली।
नैतिक शिक्षा --
कभी-कभी हवा की ही तरह हम भी अपनी जिंदगी में एक ही तरह का कार्य निरंतर करते-करते ऊबने लगते है और काम से खीझने लगते है परंतु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इसी काम को करते-करते हम निपूर्ण बनते है। हममें काम की समझ बढ़ती है और यहीं समझ हमें अनुभवी बनाकर निरंतर आगे बढ़ाती है।

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