पानी का किराया
किसी गाँव में दो भाई रहते थे। दोनो का घर पास-पास में ही था। दोनो भाईयों के स्वभाव व व्यवहार में जमीन-आसमान का अंतर था। बड़ा भाई मगरु बहुत तेज़ और झगड़ालू स्वभाव का था, वही छोटा भाई समरू बहुत ही विनम्र और शांत स्वभाव का था। ...... दोनो के घर के बिच में एक कुआँ था, जिसमें से दोनो भाई पानी भरते थे। किंतु कुएं का ज्यादातर भाग बड़े भाई के घर की तरफ था। दोनो के घर पास में होने से दोनो की रोज किसी ना किसी बात को लेकर बहस हो जाती,जहां तक संभव होता छोटा भाई, बड़े से कुछ ना कहता और शांत ही रहता। बड़ा भाई मगरू रोज कोई ना कोई नया बहाना ढूंढ ही लेता छोटे भाई से लड़ने का। ........... ऐसे ही एक दिन बड़े भाई ने छोट़े भाई को कुएं से पानी भरते देखा तो, ना जाने उसे क्या सूझा कि उसने छोटे भाई को कुएं का पानी भरने से साफ मना कर दिया और कहा -- देखो समरू इस कुएं का ज्यादातर हिस्सा मेरे घर की तरफ है, इसलिए यह कुआँ मेरा हुआ। और अब आगे तुम मेरे कुएं से पानी नहीं भर सकते। ....... छोटे भाई ने कहा -- अरे भाई ! यदि तुम मुझे पानी नहीं भरने दोगे तो मैं पानी कहाँ से लाऊंगा। गावँ के दूसरे कुएं तो बहुत दूरी पर है। बड़े भाई ने कहा -- यदि दूसरे कुएँ दूर है तो मैं क्या कर सकता हूँ। यह तुम्हारी समस्या है। मैं तो बस इतना जानता हूँ कि हमारे पूर्वजों ने यह कुआँ मेरी ओर बनवाया था यानी कि वह भी चाहते थे कि यह कुआँ मेरा ही रहें । अब तुम पानी भरने के लिए कोई नया कुआँ ढूंढ लो। .......... समरू ने बड़े भाई को मनाने की बहुत कोशिश की परंतु वह ना माना। अंततः समरू ने गाँव के दूसरे कुएँ से पानी भरना शुरू कर दिया। ऐसे ही करते करते बहुत दिन हो गए । बड़े भाई से तो यह भी ना देखा गया। उसने कुछ विचार किया और छोटे भाई के पास पहुंच कर कहने लगा -- अरे समरू ! कल मुझे एक स्वप्न आया था, जिसमें हमारे पूर्वजों से तुम्हारी समस्या देखी नहीं जा रहीं थी और उन्होंने मुझे आदेश दे डाला कि मैं यह कुआँ तुम्हें बेच दूं। समरू ने कुआँ खरीदने से मना कर दिया पर मगरू ने इसे अपने पूर्वज का आदेश का बोल कर समरू को कुआँ खरीदने के लिए मना ही लिया और आखीरकार समरू ने अपनी सारी ज़मा- पूंजी देकर कुआँ बड़े भाई से खरीद लिया। अब समरू पुनः इसी कुएं से पानी भरने लगा। कुछ दिन सब सही चलता रहा लेकिन एक दिन फिर से बड़े ने छोटे भाई को कहा कि -- अब तुम इस कुएं से पानी नहीं भर सकते क्योंकि पूर्वज पुनः मेरे सपने आए थे और उन्होंने मुझे तुमसे यह कुआँ वापस लेने के लिए कहा है। अब से यह कुआँ मेरा हुआ। ....... समरू ने कहा -- परंतु भाई यह कुआँ तो मैंने आपसे खरीद कर लिया है अतः यह मेरा कुआँ है। ...... बड़ा भाई बोला -- नहीं, नहीं भाई । तुमने तो कुआँ खरीदा है, कुएं के अंदर का पानी नहीं अतः कुआँ भले ही तुम्हारा हो परंतु कुएं के अंदर का पानी मेरा है। और अब मैं तुम्हें पानी नहीं भरने दूंगा। और अगर तुम्हें यहां से पानी भरना है तो तुम्हें अब से पानी को भी ख़रीदना पड़ेगा । यह कहते हुए बड़े भाई ने पूरे कुएं पर लोहे से बनी कीलनुमा चादर बिछा दी। ....... समरू ने बड़े भाई को मनाने की व समझाने की बहुत कोशिश की परंतु वह ना माना। अंततः समरू ने बड़े भाई की शिकायत राजा से कर दी। समरू ने राजा से बड़े भाई के झगड़ालू स्वभाव व पानी की घट़ना के बारें में बताया । ............ राजा ने बड़े भाई को भी दरबार में बुलवाया और पूछा-- क्यो भाई मगरू क्या तुमने अपने छोटे भाई को कुआँ बेचा है ?.... मगरू ने कहा-- हाँ महाराज ! यह सच है कि मैंने अपना कुआँ बेच दिया है परंतु मैंने तो सिर्फ कुआँ बेचा है ना कि कुएं के अंदर का पानी इसलिए महाराज मैं समरू को कुएं से पानी नहीं भरने दे सकता । .... राजा भी बडा न्याय प्रिय और बुद्धिमान था। राजा ने कहा -- हाँ ! मगरू तुम सही कह रहें हो । वाकई कुएं के अंदर का पानी तुम्हारा ही है। परंतु तुम अब अपना सारा पानी कुएं से बाहर निकाल लो, क्योंकि कुआँ तो अब तुम्हारे छोटे भाई का है और अब तुम इसमे अपना पानी नहीं रख सकते। और यदि तुम्हें इस कुएं में अपना पानी रखना है तो तुम्हें कुएं में पानी रखने का किराया चुकाना होगा। आखिरकार तुम्हारे छोटे भाई ने भी तो अपनी सारी जमा-पूंजी लगाकर यह खरीदा था, अतः अब उसे भी तो कुएं का फायदा मिले।...... राजा की बाते सुनकर मगरू की आँखे फटी की फटी रह गई और अन्य लोग जो दरबार में उपस्थित थे, राजा का फैसला सुनकर बहुत प्रसन्न हुएं । सभी राजा की बहुत प्रशंसा कर रहें थे। ...... अंततः मगरू को राजा की बात माननी ही पड़ी और मगरू ने छोटे भाई से समझोता कर लिया। छोटे भाई के पूरे पैसे मगरू ने पुनः वापस कर दिये और सबके बिच उसने अपने भाई से मांफी भी मांग ली, क्योंकि अपनी गलती का एहसास मगरू को हो चुका था।
नैतिक शिक्षा--
किसी को बेवजह परेशान करना अच्छा नहीं है। किसी दूसरे के लिए बेवजह बेमानी पूर्वक समस्या उत्पन्न करने से हमारी सामाजिक प्रतिष्ठा खराब होती है ।
0 टिप्पणियाँ