कार्य की अदला-बदली
एक धोबी था, जो कि लोगो के कपड़े धोकर व इस्री करके अपना जीवन यापन करता था। धोबी ने अपने घर पर एक गधा और एक कुत्ता पाल रखा था। गधा सामान ढ़ोने का कार्य करता। रोज़ धोबी कपड़े धोने नदी पर जाता तो गधे की पीठ पर ही सारे कपड़े लादकर ले जाता था। ......... कुता घर की रखवाली करता था। किसी के कपड़े चोरी ना होने देना व सारे घर की देखरेख का कार्य कुत्ते का था। .............. एक दिन दोनो घर के बाहर बैठें हुएं थे कि अचानक गधा, कुत्ते से बोल पड़ा-- दोस्त मैं तो रोज़ बोझा उठाने के कार्य को करते-करते थक गया हूँ । मेरी तो कमर में बहुत पीड़ा हो रही है। कुते ने कहा -- सही कहा दोस्त मैं भी अपनें कार्य को करतें-करतें बहुत ऊब गया हूँ । यह भी भला कोई कार्य है, रोज़-रोज़ चौकीदारी करते रहों और भौंकते रहों बस।
गधे ने कुत्ते से कहा -- दोस्त क्यूं ना हम आपस में अपने कार्य की अदला-बदली कर ले। जिससे काम के प्रति हमारी ऊबन भी कम हो जाएंगी । ........ कुत्ते ने भी बिना सोचे समझे कहा -- ठीक है भाई। आज से हम दोनो अपने-अपने काम की अदला-बदली कर लेते है। तुम रखवाली करों और मैं बोझा उठाऊंगा। ........... परंतु इसमें भी एक समस्या यह है कि धोबी को कैसे बताया जाएं कि दोनो एक - दूसरे के काम की अदला-बदली कर रहें है तो इस पर गधे ने कहा -- अरे आज रात से ही मैं तुम्हारी जगह रात को जाग कर रखवाली करूंगा और आज से ही बार-बार रैंक कर सबको सचेत करता रहूँगा। धोबी मेरे काम से खुश हो जाएंगा और समझ जाएंगा कि मैं इस कार्य के योग्य हूँ । और कल जब वह मेरी पीठ पर कपड़े की गठरी रखेगा तो मैं उसे निचे गिरा दूंगा और अपने मुंह से गठरी उठाकर तुम्हारी पीठ पर रख दूंगा । कुते को गधे का विचार जंच गया और कुता मन ही मन सोचने लगा कि बेवजह लोग गधे को मूर्ख समझते है जबकि गधा तो बड़ी सूझबुझ की बातें कर रहा है। कुते ने भी अपने नैन मटकाकर हाँ में सहमती दे दी।
दोनो को रात होने का इंतजार था। रात होते ही दोनो का इंतजार खत्म हो गया और बात अनुसार आज गधे को घर की रखवाली करनी थी सो कुता तो निश्चिंत होकर सो गया और गधा जागता रहा। मध्य रात्रि गधे ने रैंकना शुरू कर दिया। गधे की रैंकने की कर्कश आवाज से धोबी के घर के लोग व पड़ोसी परेशान हो गए तथा यह देखने कि गधा मध्य रात्रि क्यूं ज़ोर ज़ोर से रैंक रहा है, धोबी उठ गया और गधे के पास पहुंचा। धोबी ने देखा कि कुता आराम से गहरी निंद ले रहा है और गधा अधमूंदी आँखों को मलता हुआ रैंके जा रहा था। सामने धोबी को देखकर तो गधा ओर ज़ोर ज़ोर से रैंकने लगा। धोबी ने सोचा गधे को कोई परेशानी हो रही होगी सो गधे के मुंह पर कपड़ा ठूंस कर धोबी सोने चला गया।
सुबह धोबी कपड़े धोने जाने लगा तो कपड़े की गठरी धोबी ने गधे की पीठ पर लाद दी। गधे ने गठरी गिरा दी और कुते के पीठ पर रख दी। कुता तो गठरी के बोझ से पूरा ही दब गया, उसे चलते भी नहीं बना और वह लुढक गया। ईधर धोबी ने देखा तो गठरी उठाकर पुनः गधे की पीठ पर लाद दी। गधे को मन मारकर गठरी उठाकर धोबी के साथ जाना ही पड़ा। गधे और कुत्ते की कार्य की अदला-बदली से कोई भी कार्य ठीक से नहीं हो पा रहा था जिसका खामियाजा रोज़ दोनो के साथ-साथ धोबी को भी उठाना पड़ रहा था। और इसी तरह चार दिन बित गए..... पाँचवे दिन रात के समय फिर से मध्य रात्री में गधे ने रैंकना शुरू कर दिया। गधे के रैंकने से धोबी गधे के पास गया और देखा कि आज फिर से गधा रैंक रहा और कुता सो रहा है। ......... धोबी को यह सब देखकर बहुत गुस्सा आ गया और धोबी ने अपनी छड़ी उठाई और दोनो की पिटाई कर दी। दोनो की जमकर पिटाई हुई और दोनो हक्के बक्के रह गए। ............. सुबह दोनो को ( गधे व कुते को) धोबी की छड़ी की पिटाई याद आ गई और दोनो चुपचाप अपने-अपने कार्य में लग गए क्योंकि दोनो जान चुके थे कि ""जाकौ काम, उसी को साजे।""
नैतिक शिक्षा --
जब तक किसी काम में पूर्णता ना हो उस कार्य को करने के लिए पूरी तरह अपने हाथो में ना ले। क्योंकि इससे हमारा ही नुकसान होता है।
0 टिप्पणियाँ