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"गलत निर्णय"

 

                        गलत निर्णय 

एक जंगल में बहुत सारे जानवर रहते थे। शेरसिंह नामक एक शेर इस जंगल का राजा था। जंगल में शेरसिंह का बड़ा रुतबा था। ...... शेरसिंह का ही निर्णय मान्य होता था। शेरसिंह ने अपना मंत्री भालू को बना रखा था। भालू बहुत ही चापलूस था। वह चापलूसी के चलते शेरसिंह को गलत सलाह भी दे दिया करता था।  .............    धीरे-धीरे शेरसिंह को भी इस बात का घमंड होने लगा कि सभी जानवरों के बिच मेरा ही निर्णय मान्य होता है। मैं जंगल में सर्वश्रेष्ठ हूँ ।....  एक दिन शेरसिंह हमेशा की ही तरह जंगल में सैर करने निकला। सामने उसे हाथियों का झुण्ड आता दिखा। मंत्री भालू ने कहा - महाराज! आप तो इस जंगल के सबसे महान राजा है। ... आपको तो पैदल नहीं चलना चाहिए । क्यूं  ना आप आज से ही हाथी की सवारी कर जंगल भ्रमण करें ।  इससे आपकी शान ओर बढ़ जाएगी । .... शेरसिंह भालू की बातों में आकर हाथी की सवारी के लिए तैयार हो गया। हाथियों के लाख मना करने के बावजूद भी शेरसिंह ने भालू की ही बात मानते हुए हाथी की पीठ पर एक आसान बिछवाया और बैठ गया।  जेसे ही शेरसिंह की यात्रा प्रारंभ हुई, जंगल के जानवर एकत्रित होते जा रहें थे। थोड़ी दूर तक तो शेरसिंह की हाथी सवारी सही रहीं परंतु आगे मोड़ पर शेरसिंह हाथी के ऊपर अपना संतुलन सही नहीं रख पाया और हाथी की पीठ पर से धमाके के साथ गीर पड़ा। बहुत जोर से शेर की जोरदार दहाड़ निकल पडीं । यह दहाड़  इतनी तेज़ थी कि जानवरों के बिच हडकंप मच गया। शेरसिंह की हड्डी टूट चुकि थी। जैसे -तैसे शेरसिंह को घर पहुंचाया गया। जंगल के वैधजी को बुलाया गया। और वैधजी ने हमेशा के लिए इस तरह की सवारी से परहेज और चार-पांच महिने यूं ही बिस्तर पर पड़े रहने का फरमान सुना डाला।

हाथी ने मन ही मन कहा -- दूसरों की बातो में आकर बिना सोचे-समझे  किये गए गलत निर्णय का यहीं नतीजा होता है। 

नैतिक शिक्षा --

हमेशा चापलूस लोगो से दूर ही रहना चाहिए क्योंकि झूठी चापलूसी से हमेशा हमारा नुकसान ही होता है। और कभी भी किसी भी निर्णय को लेते समय स्वयं के विवेक का उपयोग करना चाहिए। किसी की बातो में आकर जल्दी में किये गए निर्णय क्षति ही पहुंचाते है।



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