मूर्ख दुश्मन
एक बार एक व्यक्ति एक वृक्ष के निचे आराम कर रहा था। उस व्यक्ति के सीर पर बाल नहीं थे। एक मक्खी आई और उस व्यक्ति के सीर पर बैठ गई। व्यक्ति ने मक्खी को हाथ से झपटा मारना चाहा, मक्खी पहले ही उड़ गई।
थोड़ी देर बाद मक्खी फिर से उस व्यक्ति के सीर पर मंडराने लगी। वह व्यक्ति बार-बार खीजला कर मक्खी को दबाकर मारने की कोशिश करता परंतु मक्खी भून-भूनननन कर उड़ जाती।
उस व्यक्ति को परेशान करने में मक्खी को बड़ा मज़ा आ रहा था। वह बार-बार व्यक्ति के सीर पर बैठती और भूनननन .. कर उड़ जाती।
इस बार तो व्यक्ति ने पूरी ताकत से एक जोरदार चपाट मक्खी को मारने के लिए अपने ही सीर पर दे मारी। मक्खी पहले ही उड़ गई ........ यह चपाट इतनी जोरदार थी कि स्वयं व्यक्ति का सीर घूम गया और उसका हाथ झुंझलाने लगा।
मक्खी को तो कुछ नहीं हुआ किंतु उस व्यक्ति को अपनी चपाट से ही दिन में तारें नजर आने लगे।
आखिरकर व्यक्ति मन ही मन सोचने लगा कि ऐसे दुश्मनों से भीड़ने से अपना ही नुकसान होता है। ऐसे दुश्मनों के पीछे समय गंवाने से अच्छा है कि मैं आगे की राह पकड़ लूं। और अंततः व्यक्ति उस स्थान से उठकर आगे की ओर चल पड़ा ।
नैतिक शिक्षा --
मूर्ख दुश्मनों के पीछे समय ना गंवाए । मूर्ख दुश्मनों को नजरअंदाज करके ही आगे बढ़ा जा सकता है।
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