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" बड़ा कछुआ"

 

                 "बड़ा कछुआ"

short story with moral for kids in hindi/ chote bachcho ki netik kahani hindi me.

 एक कछुआ अपने परिवार के साथ रहता था। जिस तालाब में कछुए का परिवार रहता था, उस तालाब के आस-पास कोई अन्य बड़ा जानवर नहीं रहता था । खूब खा-पीकर कछुआ बहुत हष्ट-पुष्ट हो गया था। वह अपने बच्चों के आगे बहुत शेखी बगारता रहता था। खूब गप्पें हांकता । कछुए को लगता कि उससे बड़ा यहाँ कोई नहीं है।

कछुए की पत्नी कछुए को समझाती कि इस तरह गप्प हांकने और शेखी बगारना अच्छी बात नहीं है। किंतु कछुआ, पत्नी की एक ना सुनता। 

एक दिन कछुए के बच्चों ने किसी बड़े से जानवर को देख लिया। चुंकि बच्चों ने पहली बार किसी नयें जानवर को देखा था इसलिए  बच्चों ने अपने पिता से उस बड़े जानवर के बारे में बताया, कछुए को लगा कि मुझसे बड़ा आखिर कौन हो सकता है ???

कछुए ने अपने पेट में  हवा भरकर अपना पेट फुला लिया और अपने बच्चों से पूछा -- देखो क्या वह जानवर इतना बड़ा था ??

बच्चों ने कहा -- नहीं, नहीं वह तो बहुत बड़ा  था।  

कछुए ने अपने पेट में ओर हवा भरी और पेट फुलाकर बच्चों से पूछा -- देखो क्या वह इतना बड़ा था ??

बच्चों ने कहा -- नहीं, नहीं वह तो ओर बड़ा था।

इस बार कछुए ने शक्ति से अधिक हवा अपने पेट में भर ली, लेकिन ज्यादा बल लगाने की वज़ह से कछुए का पेट फूट गया।

कछुए की पत्नी  अपने पति  की स्थिति को देखकर रोते हुए बोली --  भगवान ने जिसको जैसा बनाया है, उसको उसी अनुसार ही व्यवहार करना चाहिए । दिखावा करके बड़े बन भी गए तो वह बड़ापन कुछ समय के लिए ही होता है। आवश्यकता से अधिक घमंड नुकसानदेह होता है।

नैतिक शिक्षा --

घमंड ना करें । दूसरों से तुलना करने से अच्छा है, स्वयं के लिए संभावनाओ को ढूंढना और उसके लिए कोशिश करना। 

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