आलसी कौआ
एक वृक्ष की शाखा पर चूचू चिड़िया का घोंसला था। चूचू चिडिया अपने पाँच बच्चों के साथ मज़े से रहती थी। ..... इसी वृक्ष की दूसरी शाखा पर एक कौआ भी रहता था। कौआ आलसी प्रवृत्ति का था।
बहुत दिनो से कौआ देख रहा था कि चूचू चिड़िया रोज उठकर कही जाती है और अपनी चोंच में दाने लेकर आती। यह क्रम चूचू चिड़िया दिन में कई बार करती।
एक दिन कवै ने पूछ ही लिया -- क्यूं री चूचू चिड़िया तुम इतने अनाज का क्या करती हो ?? रोज़ मैं देखता हूँ कि तुम दिन में कई-कई बार अनाज लाती हो ??
चूचू चिड़िया बोली -- भाई । अगले माह बारिश का मौसम आ जाएंगा बस इसलिए मैं अभी से दाने एकत्रित कर रही हूँ ।
चूचू की बात सुनकर कौआ ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा और बोला बारिश के लिए तुम अभी से दाने एकत्रित कर रहीं हो, बारिश आने को तो अभी थोडा वक़्त है।
चूचू बोली -- भाई हंसो मत ! मैं तो कहती हूं कि तुम भी मेरे साथ दाने लेने चला करो ताकि यह दाने बारिश में काम आ सकें ।
कौए ने चूचू से कहा -- ठीक है, ठीक है। यह कहकर कौए ने बात टाल दी।
अगले दिन चूचू चिड़िया फिर दाने चुगने जा रहीं थी।
चूचू ने कौए से कहा -- कौए भाई ! ... तुम भी मेरे साथ दाने लेने चलो ताकि बारिश के मौसम में कोई दिक्क़त ना आए ।
कौए ने कहा -- "अभी हम डाल पे बैठे हैं, चोंच गड़ाते हैं । तुम चलो हम आते है।"
चूचू चिड़ियाँ ने कहा -- ठीक है । और चिड़ियाँ दाना लेने चल गई ।
चिड़ियाँ ने खूब दाने एकत्रित कर लिये थे। वही आलसी कौए ने चिड़ियाँ की हंसी उडाते हुए उसकी बात नहीं मानी ।
कुछ समय बाद बारिश शुरू हो गई । कुछ समय तो बारिश रूक-रूक कर हुई जिसमे पक्षियों को पर्याप्त दाना मील जाया करता था किंतु अचानक ही जोरदार बारिश हो गई । यह बारिश लगातार कई दिनो तक चली। इतनी तेज भारी बारिश में पक्षियों का बाहर निकलना मुश्किल हो गया।
इस लगातार बारिश की वज़ह से कौए के खाने के लाले पड़ गए। भूख के मारे उसका बुरा हाल हो गया। आख़िरकार कौएं को चूचू चिड़िया के पास जाकर दाना मांगना ही पड़ा। कौआ चूचू चिड़िया को बार-बार कह रहा था कि काश मैं तुम्हारी बात मान लेता। परंतु मैने तुम्हारा मजाक बनाया। मुझे माफ़ कर दो। अब से मैं आलस्य छोड़ दूंगा।
चूचू चिड़िया ने मुस्कुराते हुए कहा --हमें एक दूसरे की हमेशा मदद करनी चाहिए। मैं उम्मीद करती हूँ मेरे भाई ! आगे से तुम भी मेहनत करोगे । और चिड़िया ने कौए को भरपेट दाने खिलाएं और कुछ दाने कौए को घर ले जाने के लिए भी दे दियें ।
नैतिक शिक्षा --
हमें वक्त रहते ही आने वाली स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए । आलस्य हमारा शत्रु है। कोशिश करें कि आलस्य त्याग कर अपने काम के व प्रति सजग व क्रियाशील रहें । अन्यथा आलसी कौए की तरह हमें भी पछताना पड़ सकता है।
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