"अकेला चमगादड़ "
एक बार जंगल में पक्षियों और जानवरों के बिच किसी बात को लेकर बहस छिड़ गई ।
बहस इतनी बढ़ गई कि दोनो पक्षों के बिच युध्द की स्थिति पैदा हो गई । ........... चमगादड़ चुपके से पेड़ पर जाकर बैठ गया और सोचने लगा --- लड़ने दो इनको। मैं तो यहीं आराम करूंगा और यही से युध्द देखकर युध्द का मजा लूंगा।
अचानक ही पक्षियों का ध्यान चमगादड़ पर गया । पक्षियों ने चमगादड़ को अपने पक्ष में शामिल होने के लिए आग्रह किया।
चमगादड़ ने पक्षियों के पक्ष में शामिल होने से मना कर दिया।
जानवरों ने भी चमगादड़ को अपने पक्ष में शामिल होने के लिए आग्रह किया।
चमगादड़ ने जानवरों को भी मना कर दिया। और बोला तुम लोगो की लड़ाई है भाई, तुम लोग ही लड़ों। मैं तो सिर्फ मेरी लड़ाई ही लडूंगा। .........................थोड़ी देर बाद दोनो पक्षों के बिच आपसी सुलह हो गई और युध्द टल गया । अब जंगल में सभी पक्षी और जानवर हिलमिल कर रहने लगें ।
अब चमगादड़ ने जंगल के पक्षियों और जानवरों के साथ आने की कोशिश की तो पक्षियों और जानवरों ने चमगादड़ को अपने समूह से बाहर कर दिया । और हमेशा के लिए अकेले ही रहने दिया। चमगादड़ को पेड़ पर ही उल्टा लटकने की सजा दी गई ।
कहा जाता है तभी से चमगादड़ ना पक्षियों के समूह में आता है और ना जानवरों के समूह।
नैतिक शिक्षा -- समय पर किसी का साथ ना देने वालो का कोई मित्र नहीं बन सकता। किसी का साथ ना देने वाला हमेशा अकेला ही रहता है।
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