गीदड़ की चतुराई
एक गुफा में एक गीदड़ रहता था। गीदड़ बहुत चतुर था। गीदड़ ने अपनी गुफ़ा के बाहर कुछ मीट्टी फैला रखी थी। एक दिन वह जंगल से घूमफिर कर वापस अपनी गुफ़ा की तरफ चला आ रहा था।
तभी गीदड़ को गुफ़ा के बाहर कुछ निशान से दिखाई दिये। गीदड़ को समझते ज्यादा देर नहीं लगी कि उसकी गुफ़ा में कोई अन्य जंगली जानवर घूसा बैठा है, क्योंकि निशान गुफ़ा के अंदर की दिशा में जाते हुए थे, किंतु बाहर जाते हुए निशान नहीं बने थे।
गीदड़ ने इसी तरह की अनहोनी से बचने के लिए ही तो गुफ़ा के बाहर मिट्टी डाल रखी थी। गीदड़ ने चतुराई दिखाई और वह जोर-जोर से बोलने लगा -- " गुफ़ा, ओ री मेरी प्यारी गुफ़ा, रोज तो तुम मुझे आता देख कर ही मेरा स्वागत करके कहती थी-- आओ मेरे प्यारे मित्र तुम्हारा इस गुफ़ा में स्वागत है" परंतु आज तुमने मेरा स्वागत नहीं किया। यदि तुम कुछ नहीं बोलोगी तो मैं यहाँ से कहीं ओर चला जाऊंगा ।"
गीदड़ की इस तरह की बाते गुफ़ा के अंदर बैठा शेर सुन रहा था, जो कि गीदड़ की ही प्रतीक्षा कर रहा था,ताकि गीदड़ का शिकार कर उसे खा सकें ।
शेर ने सोचा लगता है यह गुफ़ा रोज गीदड़ का स्वागत करती हो। चलो मैं ही इसे आवाज दे देता हूँ वरना यह गीदड़ कही ओर चला जाएंगा और मैं भूखा ही रह जाऊंगा।
शेर ने आवाज बदल कर कहा -- ""आओ, आओ मेरे प्यारे मित्र तुम्हारा स्वागत है।""
ईधर जैसे ही गीदड़ ने शेर की आवाज़ सुनी वह वहां से दूर भाग चला क्योंकि वह जान गया था कि उसकी गुफ़ा के अंदर बैठा शेर उसका शिकार करना चाहता था।
नैतिक शिक्षा -- आस-पास होने वाली अनहोनी के प्रति हमेशा सतर्क रहें । सतर्कता और चतुराई से हम किसी भी विपत्ति को टाल सकते है।
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