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do rochak majedar kahaniya with moral in Hindi / दो रोचक मजेदार शिक्षाप्रद कहानियाँ हिन्दी में ।

 

do  rochak majedar kahaniya with moral in Hindi / दो रोचक मजेदार शिक्षाप्रद कहानियाँ हिन्दी में ।



          किसान का ईनाम


एक राजा बड़े हंसमुख थे।  राजा अक्सर अपनी प्रजा की खेर-खबर लेने के लिए अलग - अलग वेशभूषा पहन कर जाते थे,ताकि कोई उन्हें पहचान ना सकें

एक बार राजा  राज्य भ्रमण के लिए निकले ताकि प्रजा का हाल जान सकें ।

 रास्ते में एक किसान दिखाई दिया। किसान बहुत थका हुआ लग रहा था। राजा किसान के पास गए ।


राजा ने पूछा -- तुम बहुत थके हुए लग रहें हो दोस्त !

किसान बोला -- हाँ, भाई । आज खेत पर काम ज्यादा था।

राजा -- एक बात तो बताओ मित्र, तुम कितना कमा लेते हो और कितना बचा पाते हो ??


किसान -- " रोज के लगभग चार आने "


राजा --   बस ? .....  तुम्हारा खर्च  चल जाता है, इतनी कम कमाई में ??...... (  राजा ने हैरान होकर पूछा )


किसान --  हाँ !  कम तो है कमाई, पर बड़े आराम से गुजर जाती है जिन्दगी भाई।  

राजा  --  पर कैसे ?? 🤔

किसान  -- "चार आने में  से एक मेरे  लिए,एक आभार के लिए, एक वर्तमान के लिए, एक भविष्य पर उधार लगाता हूँ ।" 

राजा चकराये और बोले -- थोड़ा समझा कर बताए जनाब ।  


किसान बोला --  "कमाई के चार आने में से एक भाग मैं अपने ऊपर , एक भाग आभार मतलब एक भाग माता-पिता के लिए जिनका आजीवन मैं आभारी रहूँगा,  एक भाग वर्तमान मतलब एक भाग अपनी बीवी को देता हूँ,  एक भाग भविष्य पर उधार मतलब अपने बच्चों के भविष्य पर लगाता हूँ ।"

राजा -   किसान की बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ। हमारे राज्य में कितने बुद्धिमान और बड़े  दिल वाले किसान है। राजा ने किसान को अपना परिचय दिया। 

राजा बोला  -- तुमने कितनी बढ़िया बात कही भई।  ""पर इस उत्तर को रखना राज, जब तक मेरा चेहरा ना देख लो सौ बार"  .. .....

किसान -- जो हुक्म महाराज 🙏


अब राजा वापस अपने महल में आये। दूसरे दिन दरबार में  राजा बोले ---   हमारे दरबार में  एक से एक बुद्धिजीवी हैं । आज जो भी हमारे कथनों का सही- सही मतलब बतलाएगा , उसको मुंहमागा ईनाम दिया जाएंगा ।

राजा द्वारा ईनाम का सुनकर सभी की आँखे चमकने लगी। सबने राजा से कहा -- आप कथन बतलाएं महाराज 


राजा ने किसान द्वारा कही हुई कथनी   सबके सामने सुनाई 👇👇

"चार आने में  से एक मेरे  लिए,एक आभार के लिए, एक वर्तमान के लिए, एक भविष्य पर उधार लगाता हूँ ।"


 दरबार  में उपस्थित बुध्दिजीवियों में से कोई उपरोक्त लाइनों का मतलब  नहीं बता पाया।

राजा ने दुख जताया और कहा -- "आप बुद्धिजीवियों से ज्यादा बुद्धिमान तो वो किसान हैं ,जिसने हमें उपरोक्त चार लाइनों में अपनी पूरी कमाई बतलाई।" 

दरबार मे एक चतुर मंत्री  था ।  उसने मन ही मन कुछ सोचा और राजा से बोला -- महाराज आप मुझे दो दिन का समय दीजिए ।  अभी मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं लग रहा बस इसलिए.......


राजा बोले  --  ठीक है।  दिया तुम्हें  दो दिन का समय ।


मंत्री ने राजा से स्वास्थ्य ठीक ना होने का बहाना बनाकर दो दिन का समय मांग लिया और निकल पड़ा उस किसान को ढुढ़ने।...... मंत्री मन ही मन बड़ा खुश था कि उसे जो समय मिला है,उस समय में आसानी से वह किसान को ढूंढ निकालेगा और सही जवाब जानकर राजा से ईनाम प्राप्त कर लेगा। ....साथ ही साथ पूरे राज्य में उसकी बुद्धिमानी की तारीफ भी तो होगी।....


यहां-वहां पूछते-पूछते आखिरकार मंत्री को वह किसान मील गया।


मंत्री ने किसान से उसके कथन का मतलब जानना चाहा परंतु किसान ने सख्त तरीके से मंत्री को कुछ भी बताने से मना कर दिया। 


मंत्री ने जान से मारने धमकी तक दे डाली परंतु किसान ने कुछ भी बताने से फिर से मना कर दिया।


"दरअसल किसान से राजा ने वचन लिया था कि जब तक वह राजा का चेहरा सौ बार ना देख ले,तब तक किसी को कुछ भी ना बताएं ।"


आखिरकार  मंत्री ने दो दिन बाद राजदरबार में आकर किसान की कथन पहेली का अर्थ बिल्कुल सही-सही बता ही दिया ।


राजा को मंत्री पर शक हुआ। राजा ने कठोर सक्ति से जान लिया कि यह जवाब मंत्री को किसान ने ही बताया है।


राजा नाराज हुआ,क्योंकि राजा ने किसान को बताने के लिए पहले ही मना कर दिया था ।

 

राजा ने किसान को दरबार में बुलवाया। किसान हाथ जोड़कर राजा के समक्ष खड़ा हो गया।

किसान का मासूम और भोला सा चेहरा देखा तो राजा का गुस्सा रफूचक्कर हो गया। और राजा  किसान से बड़े ही प्यार और सहजता बोला। 

राजा ने पूछा --  याद करो,मेने क्या कहा था ????  मेरा चेहरा सौ-बार देखे बिना नहीं देना जवाब ,  क्या तुम भूल गए जनाब ?......???


किसान बोला -- नहीं-नहीं  महाराज,  मैंने अपना वादा पूरा निभाया है, सौ सिक्कों पर आपका अंकित चेहरा देखकर ही तो जवाब बताया है। 🙏🙏


राजा  मुस्कराए और बोले  -- 

वाह क्या बात है सरकार   !! तुम्हारे जेसे बुद्धीमान अन्नदाता  का जवाब सुनकर हम बहुत प्रसन्न  हुए जनाब  । 


राजा ने प्रसन्न होकर किसान को अपने राज्य में  उच्च पद पर रखना चाहा  और किसान को परिवार सहित राजदरबार में ही रहने के लिए आमंत्रित किया।


किसान बोला --  नहीं,नहीं  महाराज ।  यह राज-ठाठ नहीं  मुझे स्वीकार ।   .............  एक वादा मेरा, खेत की माटी से भी सरकार, जिस माटी में पला-बढ़ा, जिस माटी ने मुझे सहारा दिया ,उस माटी को कैसे छोड़ दूं सरकार।.... ऐसा तो करता है कोई बेईमान।........

राजा बोला --  कुछ तो उपहार हमसे ले लो, होगा तुम्हारा उपकार ।


किसान बोला --    "देना ही है तो मेरी खेत की माटी के लिए कुएं का पानी देवें, नवीनतम उपकरण देवें महाराज, उन्नत बीज व खाद देवें। "


राजा इस बार किसान के समक्ष नमस्तक हो गया 🙏और किसान के साथ -साथ राज्य के सभी किसानो को खेत की नवीनतम सामाग्री उपलब्ध कराने, कुएं खुदवाने  और  किसानो  को  उनकी आवश्यकतानुसार सहयोग प्रदान करने का वादा किया।


अंततः राजा, किसान से बोला 🙏🙏 -- ""आज से तुम्हारी खेत की माटी का हम भी रखेंगे ख्याल । हम आते रहेंगे तुमसे मिलने बार-बार, तुम भी बेझिझक कह देना दिल का हाल, क्योंकि अब से हम दोनो है एक ही  माटी के लाल।""          

किसान के विचार सुनकर राजदरबार में  उपस्थित दरबारी मन ही मन किसान की प्रसंशा  किये जा रहे थे।

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मोरल ऑफ स्टोरी --     

यह कहानी किसानो के महत्व को बताती है। इस कहानी में किसान चाहता तो राजा से ईनाम में सोना-चाँदी,नया घर-मकान, जायदाद  मांग सकता था परंतु उसने नहीं मांगा यहाँ तक कि राजदरबार में उच्च पद का प्रस्ताव भी अस्वीकार कर दिया। 

आज के समय जहां कुछ लोग खेतों को बेचकर आलीशान बंगले बनवा रहें है, वही हमारे देश में ऐसे किसान भी है जो खेतों में दिन-रात मेहनत करके अन्न का उत्पादन करते है। हम सदैव इन जैसे किसानो के आभारी रहेंगे। हो सकें तो जरूरत पड़ने पर इन किसानो की मदद जरूर करें ।





           

                    शिल्पकार


एक गाँव में एक शिल्पकार रहता था। शिल्पकारी उसका खानदानी कार्य था। किंतु शिल्पकार अपने इस कार्य से खुश नहीं था। 😵😵😔😔 


 पहाड़ो से पत्थरों को काटना और फिर पत्थरों को तराश कर मूर्तिया बनाना, यह उसका रोजमर्रा का ही कार्य था। 

कड़ी मेहनत के बाद भी शिल्पकार को मुहमांगा दाम नहीं मील पाता। और इसी वजह से वह अपने इस कार्य को सदैव कोसते रहता था।😭😪😪😫😫😪


हुनर तो शिल्पकार के पास था किंतु उसने कभी कोशिश ही नहीं की, बड़े बाजारो में अपनी मूर्तियों को बेचने की। वह बस यही सोचता कि कौन जाएगा बड़े-बड़े बाजारों में और वहां भला कौन खरीदेगा मेरी मूर्तियां ??...


एक बार गाँव  में एक नेताजी आए। नेताजी की शानो-शौकत देखकर शिल्पकार ने नेता बनने की ठानी। 🙃 


कुछ ही दिनों में शिल्पकार नेता बन भी गया। एक दिन जब वह अपनी प्रचार के लिए रैली कर था तो धूप अति तीव्र थी। कड़ी धूप की वजह से शिल्पकार बेहोश होकर गीर पड़ा ।😓😪😪😇😇


जब होश आया तो खुद को बिस्तर पर पाया। 🛌 लेटे-लेटे शिल्पकार सोचने लगा, "नेता से ज्यादा बलवान तो यह सूर्य🌞 है,जिसकी गर्मी कोई सहन नहीं कर सकता है।" अब तो मुझे सूर्य💥ही बनना है। 

कुछ दिनो बाद शिल्पकार सूर्य बन गया।अब तो वह बड़े गर्व से चमकता और भीषण गर्मी उत्पन्न करता ।🌞💥


एक दिन उसने देखा कि एक किसान खेत में बड़े इत्मीनान से आराम कर रहा था। अतः सूर्य बने शिल्पकार ने अपनी गर्मी ओर बढ़ाई किंतु उसने देखा कि किसान को तो कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।


काफी सोच-विचार के बाद उसे समझ आया कि ठंडी-ठंडी हवा पृथ्वी पर बह रही है। अब उसने सोचा कि प्यारी सी ठंडी हवा💢❄बनकर तो मैं ओर भी शक्तिशाली बन सकता हूं और कुछ दिनो बाद ही वह  "हवा" बन गया।💢❄


वह  "हवा" बनकर इठलाता हुआ ईधर-उधर घूमने लगा था कि अचानक बिच में एक विशाल पर्वत 🗻आ गया ? पर्वत को वह पार ना कर सका। 


पर्वत को पार ना करने कर सकने के कारण उसने सोचा कि हवा से बलवान तो यह विशालकाय पर्वत है। अब मैं  इससे भी बड़ा पर्वत बन कर रहूंगा। और कुछ दिनो में वह विशालकाय पर्वत बन गया ।🗻⛰ 


पर्वत बनने के बाद तो उसे अपने आप पर बहुत ही ज्यादा घमंड हो गया। वह घमंड करता फिरता कि उससे 🗻⛰ शक्तिशाली कोई हो ही नहीं सकता, सब उसकी विशालता के आगे नगण्य (छोटे) हैं।


कुछ दिनो बाद उसे छैनी और हथोड़े की आवाज सुनाई दी । छैनी और हथोड़े की कर्कश आवाज इस विशालकाय पर्वत रूपी शिल्पकार को परेशान कर रही थी।😬😡 यह तेज कर्कश आवाज पर्वत को तोड़े जा रही थी। वह थोडा झूका और उसने देखा कि एक शिल्पकार उसके पर्वत को तोड़ रहा है।


छैनी और हथोड़े की आवाज धीरे-धीरे बहुत तेज और कर्कश हो पर्वत को पूरी तरह तोड़ कर चकनाचूर करने ही वाली थी कि अचानक से उसकी निंद खुल गई ।😴😕☹☹


निंद खुलते ही वह बहुत परेशान और हैरान सा हो गया ।😯 पलंग के सामने लगे आईने में  उसने खुद को निहारा और कुछ देर स्तब्ध सा निहारता ही रहा और 💕उसने पाया कि  "जो विशालकाय पर्वत को भी तोड़ने की क्षमता रखता है, "वह तो वो स्वयं ही है। "💕


इस स्वप्न के बाद शिल्पकार  किसी ओर की तरह नहीं बनना चाहता था, बल्कि  स्वयं की मेहनत और लगन की शक्ति के साथ आगे बढ़कर उँचा मुकाम पाना चाहता था।


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मोरल ऑफ स्टोरी --   

किसी भी कार्य में सही परिणाम के लिए सबसे बड़ी भूमिका  हमारी इच्छाशक्ति की ही होती है।  स्वयं को हीन मानकर कार्य  करेंगे तो उससे वह परिणाम नहीं मील पाएगा, जैसा हम चाहते है। चाहें काम छोटा हो या बड़ा, "कार्य के प्रति आपकी लगन कितनी है, बस यही एक चीज है जो आपको शक्तिशाली व्यक्ति बनाती है । "




उपरोक्त दोनो ही कहानियां मुझे बेहद पसंद है, उम्मीद  है आप लोग भी इन्हें  पसंद करेगें । आपको ये कहानियाँ कैसी लगी, कमेंट्स करके जरूर बातएं। यदि आपको भी यह कहानियाँ पसंद आई है तो इसे दूसरो के साथ भी शेयर करें ।🙏



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