गबडू नाई की कहानी
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गबडू नाई की कहानी
एक राज्य में राजा भानूसिंह का शासन चलता था। राजा के राज्य में गबडू नाई नामक एक नाई रहता था।
नाई को काना-फूसी करने की आदत थी। मतलब नाई के पेट में कोई बात पचती नहीं थी। उसे जब भी कोई नई बात या खबर पता चलती गबडू नाई पूरे गाँव में खबर को आग की तरह फैला देता था।
एक दिन राजा भानूसिंह ने गबडू नाई को अपनी हजामत करने के लिए बुलाया। गबडू राजा के दरबार में आया और राजा की हजामत बनाने लगा।
गबडू तो बहुत ही बातूनी था। राजा भी उसकी बातो में मस्त हो गये। बातो-बातो मे नाई ने राजा के सीर के बाल काटने शुरू कर दिये। जैसे गबडू नाई राजा के बालो में कंघा करता कंघा कही अटक जाता। तीन चार बार कंघा अटका तो उसने राजा के थोडे बालों को हटाकर देखा तो हैरान रह गया। उसने देखा कि राजा के सीर पर दो छोटे-छोटे सींग है।
उसने राजा से कहा --- महाराज आपके सर पर तो सींग है। बातो में मस्त राजा को याद आया और मन ही मन विचार करने लगा --- अरे ! यह क्या ! बातो ही बातो में इस गबडू नाई ने मेरा भेद जान लीया। यह भेद वर्षो से मेने सबसे छुपाकर रखा था।
राजा ने सोचा कि गबडू नाई मेरे इस भेद को पूरे राज्य में आग की तरह फैला देगा जिससे सब मेरी हंसी उडाएगें और आस पास के सभी राजाओ के बिच में भी मैं हंसी का पात्र बन जाऊंगा । अतः इस नाई को मुझे रोकना होगा।
राजा ने नाई से कड़क आवाज में कहा--- ऐ रे गबडू नाई ! तु मेरा राज जान चुका है इसलिए मै अब तुझे जींदा नहीं रख सकता और तुझे मै अभी मृत्युदंड की सज़ा सुनाता हूं। नाई ने राजा से दया की विनती की और कहा महाराज मेरी जान ना ले।
मै आपसे वादा करता हूं कि आपका यह राज मैं किसी को भी नही बताउंगा। राजा को नाई पर दया आती है अतः राजा ने नाई को कहा -- ठीक है गबडू नाई ! मैं तुम्हें नहीं मारूंगा परंतु यदि तुमने मेरा राज किसी से भी कहा तो मै तुम्हें जान से मार दूंगा ।
गबडू ने कहा -- महाराज मैं आपका यह राज किसी को नही बताउंगा। मैं आपसे वादा करता हूं महाराज ।
शुरूवात में गबडू नाई के दिन सही से गुजर रहें थे परंतु गबडू नाई को राजा का राज जानने के बाद चैन नहीं पड़ रहीं थी।गबडू के पेट में दर्द होने लगा।
धीरे-धीरे गबडू ने दुकान जाना भी बंद कर दिया कि कही किसी को कुछ बताने में ना आ जाये।
एक दिन तो हद हो गई, गबडू के पेट में तेज दर्द होने लगा । गबडू जानता था कि जब तक वह अपने अंदर छीपा राज उगल ना दे, उसका पेट दर्द ठीक होने वाला नहीं।
उसे एक विचार सूझा। वह सबसे छुपता हुआ एक सुनसान जंगल में गया। थोड़ी देर यहां-वहां टहल-टहल कर आसपास नज़र दौड़ाई । जब उसे विश्वास हो गया कि दूर -दूर तक कोई नहीं है। गबडू ने ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना शुरू कर दिया ।
"मैं गबडू नाई हूँ और राजा के दो सींग है,👿 राजा के दो सींग है।👿 राजा के दो सींग है,राजा के दो सींग है।👿
इसी तरह गबडू ने ज़ोर ज़ोर से बोलकर अपने अंदर छिपे राज को सुनसान जंगल को सुना ड़ाला। अब जाकर गबडू को राहत मीली और उसके पेट का दर्द कुछ कम हुआ😵🤪
अब गबडू पहले की ही तरह अपने काम में लग गया। चूंकि गबडू के पेट में छिपा राज़ बाहर आ गया था और किसी को पता भी नहीं चला था इसलिए गबडू निश्चिंत रहने लगा।
एक दिन अचानक गांव में नाचने-गाने वालो की मंडली आई। जैसे ही मंडली वाले गाँव से निकले उनकी ढोलक और मंजीरे से अलग ही राग निकल रहे थे।
ढ़ोलक से आवाज आती है -- राजा के दो सींग हैं, राजा के दो सींग हैं ।2.......
मंजीरे से आवाज आती है-- किसने कहा, किसने कहा ??.....
ढ़ोलक से पुनः आवाज आई -- गबडू नाई ने कहा, गबडू नाई ने कहा, गबडू नाई ने कहा ........
पूरे गाँव में बात आग की तरह फैल गई। किसी ने गबडू नाई को भी यह खबर दे डाली । अब तो गबडू नाई को सजा के ड़र से रोना आ रहा था।
राजा के सिपाहियों ने सुना तो राजा को ख़बर दी गई । मंडली वालो को राजा के समक्ष प्रस्तुत किया गया ।
राजा ने मंडली वालो से पूछा --- क्या तुम्हारे वाद्य यंत्रों में से कोई विशेष आवाज आ रही है ??
मंडली वालो ने हाँ में जवाब दिया।
मंडली वालो ने कहा --महाराज, क्षमा चाहते है , परंतु इसमे हमारा कोई दोष नहीं है। हमारी ढ़ोलक और मंजीरे से बहुत ही सुरीली और अच्छी आवाज आती है परंतु महाराज जैसे ही हमने इस गाँव में प्रवेश किया ढ़ोलक-मंजीरे का तो, राग-सूर ही बदल गया। हमारी लाख कोशिश के बावजूद भी यह अपने आप ही बोलने लगती है।
हम आपको बजाकर बताते है।
जैसे ही मंडली वालो ने ढ़ोलक, मंजीरे बजायें,फिर से वही राग -आवाज।
ढ़ोलक -- राजा के दो सींग हैं, राजा के दो सींग हैं ।
मंजीरे-- किसने कहा,किसने कहा,??
ढ़ोलक -- गबडू नाई ने कहा, गबडू नाई ने कहा।
अब क्या राजदरबार में सब एक-दूसरे का मुंह देखकर इशारा करते हुए आपस में फुसफुसाने लगें।
राजा आग बबूला होकर जोर से चिल्लाने लगा और राजा ने तुरंत गबडू नाई को बुलवाया।
राजा के सिपाही गबडू के घर पहुंचे तो गबडू नाई अपने घर में कमरे छिप गया।लाख मशक्कत के बाद राजा के सिपाही गबडू को उठाकर दरबार में लेकर आए।
गबडू तो कांप रहा था । उसका ड़र के मारे बहुत बुरा हाल हो रहा था।
राजा बोला -- दुष्ट गबडू, मेने कहा था कि मेरा राज किसी से भी मत कहना फिर भी तुम नहीं माने। आखिरकार तुमने मेरी जग हंसाई करा ही दी।
गबडू नाई ने कंपकपाते हुए कहा - न..नन.... ह.ह... नहीं ...मम... हहह....महाराज ....
मेने किसी से आपका राज नहीं बताया। और गबडू ने जंगल की पूरी घटना राजा से कहा दी।
राजा गबडू की बात मानने को तैयार ही नहीं था। गुस्से में राजा ने गबडू नाई को फांसी की सजा सुना डाली।
गबडू नाई गिडगिडा रहा था और बार -बार सजा माफ करने का आग्रह राजा से कर रहा था।
नाचने गाने वालो की मंडली में एक युवक बहुत ही बुद्धिमान था, उससे गबडू नाई का दुःख देखा नहीं जा रहा था । उसने कुछ सोचा और सभा के बिच में अपनी बात रखी।
महाराज! मैं बिच में बोलने के लिए क्षमा चाहता हूँ परंतु मैं कुछ कहना चाहता हूँ महाराज । आप मुझे अपना पक्ष रखने की आज्ञा देवें।
राजा -- कहो! क्या कहना है तुम्हें ।
मंडली का युवक बोला -- राजाजी ! इस पूरे घटनाक्रम में अकेला गबडू नाई ही दोषी नहीं है, वरन दोषी तो ओर भी लोग है, उन्हें भी इसकी सजा मिलनी ही चाहिए ।
राजा -- 🤨🤨 अच्छा।
युवक -- इसमे सबसे ज्यादा दोषी तो जंगल से वृक्ष काटने वाले व्यक्ति है। जिन्होंने वृक्षों को काटकर लकड़ी बेची। फिर जिसने इन लकड़ियो को खरीदा, वह भी दोषी हुआ। इन लकड़ियों से ढ़ोलक-मंजीरे बनाये, वह भी दोषी और इन ढोलक-मंजीरे को खरीदकर उपयोग में लाने वाले लोग और मंडली वाले भी दोषी और तो ओर जिन लोगो ने इन मंडली वालो के गीत-संगीत को पसंद किया, वह भी दोषी क्योंकि आपका राज तो इन सभी ने एक -दुसरे को बताया। महाराज ये सब भी बराबर के दोषी है।
राजा -- 🤨🤔हहममम.....
युवक -- ☝️हाँ महाराज ये सभी दोषी है। और तो ओर आप भी कही ना कही दोषी है महाराज ।
राजा -- हम ! हम भी दोषी,..वो कैसे??
युवक🙏 -- क्योंकि सिंग तो आपके सर पर ही है। 😉
महाराज , आपने जंग हंसाई के ड़र से यह राज अपनी प्रजा से छुपाया जबकी प्रजा राजा के लिए एक परिवार की ही तरह होती है। और दोषी आपका यह प्रजा रूपी परिवार भी है, जिसका व्यवहार अपने राजा के प्रति उपहास का भय पैदा करता है।
तो महाराज मेरे मतानुसार तो आपके राज को उजागर करने में सभी दोषी हुए।
इसलिए सभी सजा के हकदार हुए महाराज । सभी को फांसी दी जानी चाहिए महाराज ।
युवक की बात सुनकर सभी उपस्थित लोग सजा के ड़र से भयभीत हो रहें थे और कुछ तो मन ही मन मंडली के युवक को कोस रहे थे कि यह तो हम भी ले डूबेगा ।😢😢😢😢😥😥😭😭😭😭😫😫
(कुछ देर के लिए सभा में सन्नाटा छा गया)
राजा बोले -- वाह युवक ! हम तुम्हारी बुद्धिमानी से बहुत खुश हुए। तुमने तो एक निर्दोष की जान बचाने के लिए अपनी जान की भी परवाह नहीं की और स्वयं आगे आकर अपनी बात कही, वो भी किसी ओर व्यक्ति को बचाने के लिए।
"हम तुम जैसे नीड़र युवक को अपने राजदरबार में उच्च सलाहकार नियुक्त करते है। सभी! की सजा माफ करते है।"
राजा ने मुस्करा कर कहा -- रही बात हमारे राज की तो राज तो अब राज रहा ही नहीं ।😉😃 वैसे गधे के सींग नहीं होते है और हमारे तो दो सींग है मतलब हम गधे नहीं है। 🤣🤣और राजा ने यह कहते हुए जोर का ठहाका लगाया।
सभा में उपस्थित लोग भी राजा के साथ मुस्करा दिये 😀😀😀😀 और राजा की जय जयकार करने लगें ।
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