होली की विशेष कहानियाँ
हमारे देश भारत मे प्रायः सालभर त्योहारो की
चहल पहल बनी रहती है और प्रत्येक त्योहार
से जुडी कोई ना कोई कहानी या कथा जरूर
होती है । वास्तव मे यह कहानियाँ या कथाएं
ही इन त्योहारो की महत्ता बतलाती है । हमारे
देश मे होली त्योहार से संबंधित कई धार्मिक
कथाएं प्रचलित है जिनका साक्ष्य हमे पुराणो मे
भी मिलता है । यह कहानी या कथा ही किसी
भी त्योहार को मनाये जाने के पीछे छुपे हुए
उद्देश्यो को उजागर करने मे हमारी मदद करती है
आज हम आपको अपने इस
ब्लॉग "Tech Hindi kissey , kahani,
pakwan " के माध्यम से होली से संबंधित
मे जानकारी देगे । हममे से ज्यादातर लोगो ने
होली के संंदर्भ मे प्रायः भक्त प्रहलाद और
हिरण्यकश्यप की ही कहानी सुनी होगी परंतु
आज हम यहाँ पर होली की ओर भी विशेष
कहानी पर प्रकाश डालेगे ।
1 भगवान शिव और कामदेव की कथा ( शिव पुराण )
2 राक्षसी धुंधी की कथा
(भविष्य पुराण )
3 भक्त प्रहलाद की कथा
भगवान शिव और कामदेव की कथा
(शिव पुराण )
यह कथा शिव पुराण वर्णित है। इसके अनुसार
जब राजा द्वारा द्वारा विशाल यज्ञ का आयोजन
किया गया तो राजा द्वारा अपनी पुत्री सती
और भगवान को इस आयोजन मे आमंत्रित नही
किया। परंतु माँ सती भगवान शिव के मना करने
के बाद भी इस यज्ञ मे शामिल हुई और यहाँ
आकर अपमानित हुई। इससे दुखी होकर माँ सती
ने इस यज्ञ मे अपनी आहुति दे दी । इस घटना
की खबर सुनते ही भगवान शिव ने पूरे
ब्रह्मांड मे तांडव मचा दिया था और चारो
तरफ हाहाकार मचा दिया था ।
अतः सभी देवताओ ने भगवान
शिव को मनाने हेतु विशेष प्रार्थना और स्तुति
की और शिवजी को मनाने के अनेकानेक
यत्न किये गए । काफी प्रयत्नो के बाद शिवजी
का क्रोध थोडा शांत हुआ और इस घटना
के बाद भगवान शिव घोर तपस्या मे लीन
हो गए थे।
जब माँ सती का दुबारा जन्म पार्वती
के रूप मे हुआ तो उन्होंने भगवान शंकर से
ही विवाह करने की ठान रखी थी। इसके लिए
माँ पार्वती ने जंगल जाकर घोर तपस्या की
परंतु भगवान शिव का तपस्या से ध्यान टूट ही
नही रहा था । सृष्टी के सृजन हेतु और माँ
पार्वती से भगवान शिव को मिलाने के लिए
सभी देवताओ द्वारा भी भगवान शिव का
ध्यान तोडने के लिए किए गए सारे प्रयास
विफल रहे । अंततः इन्द्रजी के कहने पर
कामदेवजी द्वारा भगवान शिव के तीसरे
जिस दिन कामदेव को पुनर्जीवित
किया गया, वह दिन होली का ही
दिन था ।
चुकी सृष्टि के यथावत
क्रियान्वयन हेतु काम की महत्वपूर्ण
भूमिका होती है इसलिए कामदेव के
पुनर्जीवित होने की खुशी लोगो ने
एक-दूसरे पर फूल और गुलाल
बरसा कर मनाई । और यही प्रथा
होली के नाम से प्रसिद्ध हो गई ।
राक्षसी धुंधी की कथा
(भविष्य पुराण )
इस कथा का वर्णन भविष्य पुराण मे मिलता
है । जिसके अनुसार सतयुग मे राजा रघु के
राज्य मे एक राक्षसी थी जिसका नाम धुंधी था
राक्षसी धुंधी ने भगवान शिव की तपस्या कर
शिव से वर प्राप्त किया कि उसे किसी के
भी द्वारा मृत्यु का भय ना हो। सारे संसार मे
उसे किसी भी देवता , दैत्य, मनुष्य और कोई
भी जानवर से तथा किसी भी
अस्त्र-शस्त्र से, दिन -रात से तथा
ठंड से या गर्मी या बारिश से
या किसी भी वस्तु से उसकी मृत्यु
कभी भी ना हो।
भगवान शिव ने राक्षसी धुंधी की
तपस्या से प्रसन्न होकर उसे तथास्तु कहकर
वरदान दे दिया परंतु साथ ही उसे कहा कि
तुम्हे हमेशा छोटे बालको का भय बना रहेगा ।
राक्षसी धुंधी ने सोचा कि जब मुझे बडे-बडे
शुरवीरो का भय नही है तो ये छोटे- छोटे बालक
मेरा क्या बिगाड लेगें । यही सोचकर राक्षसी
निश्चिंत होकर रहने लगी । राक्षसी का आतंक
चारो ओर फैल गया था । उसने सबके विनाश
का मन बना रखा था और उसके आतंक से
सभी गाँववासी बहुत परेशान थे। एक दिन गाँव
के बालको ने मिलकर एक योजना बनाई और
अपने शोरगुल से राक्षसी की नाक मे दम
कर दिया अंततः बालको की टोली
ने एक साथ मिलकर राक्षसी को गाँव के बाहर निकाल भगाया अतः राक्षसी के आंतक से मुक्त होकर गाँव के लोगो द्वारा राक्षसी का पुतला बना कर जलाया गया और रंग और गुलाल एक-दूसरे पर लगाकर खुशी मनाई गयी ।
भक्त प्रहलाद की कथा
यह कथा तो हम सभी बचपन से सुनते आ
रहे है । यह सबसे अधिक लोकप्रिय कथा है।
कथा अनुसार दैत्य राजा हिरण्यकश्यप ने अपनी
तपस्या के बल पर ब्रह्मजी से वरदान प्राप्त
किया था कि उसे संसार मे कोई भी
""जीव -जंतु , इंसान, देवी-देवता, राक्षस, जानवर
दिन मे या रात मे , धरती पर या आकाश पर
घर मे या बहार , न किसी अस्त्र न किसी शस्त्र
से"" उसे ना मार सकें अर्थात उसकी मृत्यु कभी
भी ना हो।
अपने इसी वरदान के अहंकार के
वशीभूत होकर राजा हिरण्यकश्यप ने पूरी
धरती पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया था ओर वह स्वंय को भगवान से बढ़कर समझने लगा । वह कहता था कि सभी उसी की पूजा करे और जयजयकार
करे। परंतु हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। वह हमेशा भगवान विष्णु की भक्ति मे लीन रहता था।
हिरण्यकश्यप को अपने पुत्र की
विष्णु के प्रति अनन्य भक्ति नापसंद थी।
सारी दुनिया मे स्वयं की जयजयकार करवा कर देवता से भी श्रेष्ठ बनने का सपना देखने वाले राजा हिरण्यकश्यप के घर उसका स्वंय का पुत्र ही किसी अन्य देवता की पूजा करे, यह बात उसे खलने लगी। उसने प्रहलाद को हर प्रकार योजना
से समझाने की कोशिश की परंतु प्रहलाद ने
अपने पिता की बात नही मानी अंततः हिरण्यकश्यप
ने प्रहलाद को जान से मारने का निर्णय लिया
और इसके लिए उसने तरह -तरह की युक्तियां
आजमाई परंतु हर बार प्रहलाद भगवान विष्णु
की कृपा से बच जाते । आखिरकार हार कर उसे
एक युक्ति सूझी । उसने इसके लिए अपनी बहन
होलिका की सहायता ली। होलिका को अग्नि मे
ना जलने का वरदान प्राप्त था । अतः लकडीयों
की सेज बनाई गई और होलिका
प्रहलाद को गोद मे लेकर इस पर
बैठ गई। और जल्द ही इन
लकडीयों मे आग लगा दी गई । होलिका निश्चिंत थी और मन ही मन प्रसन्न थी । प्रहलाद इस समय भी
जप कर रहे थे। जैसे-जैसे आग बढने गई वैसे-वैसे होलिका का शरीर जलने लगा वह आग की तपन की वजह से चिल्लाने लगी। अंततः इस प्रचंड अग्नि मे
होलिका जलकर भस्म हो गई किंतु
भक्त प्रहलाद यथावत सुरक्षित इस
प्रचंड अग्नि से सुरक्षित बच गए ।
इस घटना के बाद भगवान
विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप
का वध किया और अपने परम भक्त प्रहलाद
को अपने विशाल दिव्य रूप मे दर्शन दिए ।
असुर राजा हिरण्यकश्यप व राक्षसी होलिका
का अंत होने की खुशी मे लोग एक-दूसरे
पर रंग गुलाल लगाकर नाचने गाने लगे।
बुराई के आंतक से मुक्त होने की
खुशी मे मनाया गया हषोउललास
एक प्रथा के रूप मे आगे
प्रचलित हुआ जिसे हम होली
त्योहार के नाम से जानते है।
श्रीकृष्ण और राक्षसी पूतना की कथा
जब भगवान ने कृष्ण के रूप मे धरती पर
जन्म लिया तो अनेक बाल - लीला के साथ ही
साथ अनेक आतंकी राक्षसो और शक्तिशाली
दैत्यो का भी संहार किया था। यहाँ तक की
श्रीकृष्ण के मामा कंस को भी कृष्ण से मृत्यु
का भय था। कंस एक दुराचारी था और जब
उसे पता चला कि उसकी मृत्यु कृष्ण के हाथो
होगी तो कंस ने कृष्ण को मारने के लिए बहुत
प्रयत्न किये किंतु सफल ना हो सका । इसी
समय पूतना नाम की राक्षसी का भी आतंक
फैला हुआ था । पूतना राक्षसी सुंदर स्त्री का
रूप धारण करके छोटे बच्चो को दुग्धपान
कराया करती थी । इसी बहाने वह बच्चो को
विष पिलाकर बच्चो के प्राण हर लिया करती
थी । मामा कंस के कहने पर ही पूतना कृष्ण
को मारने के लिए आई । पूतना राक्षसी ने एक
सुंदर स्त्री का रूपन धारण किया और कृष्ण
को दुग्धपान कराया । बाल - कृष्ण मन ही मन
पूतना का वध करने का निश्चय करके
दुग्धपान करने लगे और दुग्धपान करते-करते
ही बाल-कृष्ण ने राक्षसी पूतना के प्राण
हर लिए ।
कहा जाता है कि कृष्ण द्वारा
मारे जाने के बाद राक्षसी पूतना का शरीर
गायब हो गया था । अतः गाँव वालो ने पूतना
उपरोक्त सभी कथाओ का बस एक
ही सार है कि बुराई का अंत
निश्चित ही होता है। इसलिए हम सभी
सिर्फ नाम के लिए ही होली ना
मनाये अपितु अपनी बुराई को होली
की अग्नि मे जलाकर अच्छाई को
अपने जीवन मे उतारने की कोशिश
हमेशा ही करे। 👍
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