कौवे की काँव-काँव
एक दिन आंगन में लगें आम के पेड़ पर एक कौआ आ बैठा और बहुत देर से काँव-काँव किये जा रहा था।
घर के लोग आपस में किसी मेहमान के आने की आशंका जताने लगे। सभी ने कौए की "काँव-काँव" की बोली को मेहमानों के आने का संकेत बताते हुए इस घटना पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और अपने-अपने कामों में लगे रहें।
दुपहर के 12 बज चुके थे। अब तो पिंकी भी स्कुल से आ चुकी थी, परंतु कवै की काँव-काँव बंद ही नहीं हो रहीं थी। ........... तभी पिंकी का ध्यान कवै पर गया। झट से हाथ-मुंह धोकर सबसे पहले पिंकी घर में रखे मिट्टी के बडे अनुपयोगी दीपक (जिसे वह अपने खिलोने के तोर पर उपयोग करती थी),में पानी भर लाई और पेड़ के निचे रख आई।
थोड़ी ही देर बाद कवा पेड़ से निचे आया। उसने थोडा रूक-रूक के पेट भर के पानी पिया और उड़ गया।
पिंकी के दादाजी जो कि इस सारी घटना को देख रहें थे, बहुत खुश हुए। दादाजी ने पिंकी के पास जाकर पूछा -- बेटा तुम्हें केसे पता चला कि कवा प्यासा था।
पिंकी बोली - हमारी कक्षा चार में हमारी मैम ने हमें पक्षियों के लिए दाना और पानी आँगन में रखने की कहानी सुनाई थी। आज कौवे की काँव-काँव सुनकर लगा जिस तरह भूख लगने पर मैं शोर मचाती हूँ,शायद उसी तरह कौवे को भी भूख या प्यास लगी होंगी । बेचारा बोल तो सकता नहीं। बस इसलिए ही..... अपनी पोती की बाते सुनकर दादाजी गदगद हुएं जा रहें थे क्योंकि आज एक नया सबक उनकी एक छोटी सी बच्ची ने उन्हें सिखाया था। अब पोती ने दादाजी से पूछा - मैने ठीक किया ना दादाजी ??
दादाजी बड़ी सी मुस्कान के साथ बोले -- हाँ, मेरी बच्ची। आज तो तुमने हम सबको नया सबक बताया है कि ""कौए की काँव-काँव का मतलब सिर्फ मेहमानों का घर में आना ही नहीं होता बल्कि काँव-काँव का मतलब कौए को भूख व प्यास लगना भी होता है।""
नैतिक शिक्षा-- अच्छी-अच्छी कहानियों के माध्यम से बच्चों में सकारात्मक और व्यवहारिक गुणों का समावेश होता है जेसे पिंकी ने अपनी मैम के द्वारा कही गई कहानी को व्यवहारिक तौर पर लेते हुए सबको नया सबक सीखा दिया। हम भी अपने घर के आस-पास के पक्षियों के लिए दाना और पानी अवश्य ही रखें।
0 टिप्पणियाँ